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थे । कालान्तर में द्वारकाधीश कृष्ण वासुदेव की पूजा करने वालों का एक प्रभावशाली सम्प्रदाय अस्तित्व में आया जिसके माध्यम से कृष्ण की पूजा और भी लोकप्रिय होती गई। - कृष्ण, हिंसापूर्ण वैदिक यज्ञों के विरोधी थे, और इसके स्थान पर आत्मयज्ञों की विचारधारा को उन्होंने पोषित किया । इस विचारधारा के अनुसार तप, त्याग, हृदयकी सरलता, सत्य वचन तथा अहिंसा आदि के आचरण द्वारा आत्मशुद्धि का मार्ग ही धर्म माना गया । इस विचारधारा की शिक्षा कृष्ण ने अपने चचेरे भाई अरिष्टनेमि से प्राप्त की थी। ___ जैन साहित्य में कृष्ण, श्रेष्ठ पुरुष वासुदेव हैं और साथ ही वे बाईसवें तीर्थंकर अरिष्टनेमि के समकालीन हैं । वे नियमित रूप से उपदेश सभाओं में उपस्थित होने वाले धर्मप्राण पुरुष हैं । समस्त जैन साहित्य में कृष्ण का स्वरूप इन्हीं दो तथ्यों की पृष्ठभूमि में चित्रित हुआ है।
38 • हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वरूप-विकास