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इस ग्रन्थ में कौरव - पाण्डवों का वर्णन भी हुआ है पर विशेष नहीं । इसकी भाषा प्राचीन महाराष्ट्री प्राकृत है ।"
“चउप्पन्न महापुरिषचरियं २ यह आचार्य शीलांक की एक महत्त्वपूर्ण कृति है । इसमें नौ प्रतिवासुदेवों को छोड़कर शेष चउप्पन्न महापुरुषों का जीवन उटंकित किया गया है । ४९, ५०, ५१ वें अध्याय में अरिष्टनेमि, कृष्ण वासुदेव और बलदेव का चरित्र चित्रित किया गया है, भाषा साहित्यिक प्राकृत है I
भव - भावना इसके रचयिता मल्लधारी आचार्य हेमचन्द्र सूरि हैं । उन्होंने वि० सं० १२२३ (सन् १९७० ) में प्रस्तुत ग्रन्थ की रचना की है । इसमें भगवान नेमिनाथ का चरित्र, कंस का वृत्तान्त, वसुदेव-देवकी का विवाह, कृष्णजन्म, कंस वध, आदि विविध प्रसंग हैं ।
कुमारपाल पडिबोह (कुमारपाल प्रतिबोध ) – इसके रचयिता सोमप्रभसूरि हैं । प्रस्तुत ग्रन्थ में मद्यपान के दुर्गुण बताते हुए द्वारिका दहन की कथा दी गई है । तप के सम्बन्ध में रुक्मिणी की कथा भी आयी है ।
कण्हवचरित' (कृष्णचरित्र) इस ग्रन्थ के रचयिता तपागच्छीय देवेन्द्रसूरि
| प्रस्तुत चरित में वसुदेव के पूर्वभव, कंस का जन्म वसुदेव का भ्रमण, अनेक कन्याओं से पाणिग्रहण, कृष्ण का जन्म, कंस का वध, द्वारिका नगरी का निर्माण, कृष्ण की अग्रमहिषियाँ, प्रद्युम्न का जन्म, जरासंध के साथ युद्ध, नेमिनाथ और राजीमती के साथ विवाह की चर्चा आदि सभी विषय आए हैं । इनके अतिरिक्त भी अनेक रचनाएँ हैं ।
( ख ) संस्कृत जैन कृष्ण - काव्य
जैन लेखकों ने प्राकृत और अपभ्रंश भाषा में ही नहीं, संस्कृत भाषा में
१ - प्राकृत साहित्य का इतिहास - डॉ. जगदीशचन्द्र जैन, पृ० ३८२ ।
२- पं० अमृतलाल मोहनलाल भोजक द्वारा संपादित - प्राकृत ग्रन्थ परिषद वाराणसी द्वारा सन् १९६१ में प्रकाशित । गुजराती अनुवाद आचार्य हेमसागरसूरि द्वारा सेठ देवचन्द लालभाई द्वारा १९६९में प्रकाशित हुआ है ।
३- ऋषभदेवजी केशरीमलजी जैन श्वेताम्बर संस्था - रतलाम द्वारा वि. संवत् १९९२ में दो
भागों में प्रकाशित ।
४- यह ग्रन्थ गायकवाड़ ओरिएण्टल सीरिज़, बड़ौदा से मुनि जिनविजयजी द्वारा सन् १९२० में संपादित होकर प्रकाशित हुआ है । इसका गुजराती अनुवाद जैन आत्मानन्द भा की ओर से प्रकाशित हुआ ।
५- केशरीमलजी संस्था
रतलाम द्वारा सन् १९३० में प्रकाशित ।
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• हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वरूप - विकास