________________
है । यदि वह गंडिका उपलब्ध होती तो संभवतः श्रीकृष्ण के सम्बम्ध में अन्य अनेक अज्ञात बातें भी प्रकाश में आ सकती थीं।
उपलब्ध जैन आगम साहित्य में श्रीकृष्ण के संबंध में सामग्री बिखरी हुई मिलती है । आगमों में यद्यपि परवर्ती साहित्य की तरह व्यवस्थित जीवनचरित्र कहीं पर भी नहीं है तथापि जो सामग्री है उसे व्यवस्थित रूप से एक स्थान पर एकत्रित करने से कृष्ण का तेजस्वी रूप हमारे सामने आता है ।।
अन्तकृतदशांग,' समवायांग,२ णायाधम्मकहाओ,३ स्थानांग, निरियावलिका,५ प्रश्नव्याकरण, उत्तराध्ययन आदि ग्रन्थों में उनके महान व्यक्तित्व के दर्शन होते हैं । जैसे कि वे अनेक गुण-सम्पन्न और सदाचारनिष्ठ थे, अत्यन्त ओजस्वी, तेजस्वी, वर्चस्वी और यशस्वी महापुरुष थे । उन्हें ओघबली, अतिबली, महाबली, अप्रतिहत और अपराजित कहा गया है । उनके शरीर में अपार बल था । वे महा रत्नवज्र को भी चुटकी से . पीस डालते थे।
जैन दृष्टि से जो तिरसठ श्लाघनीय पुरुष हुए हैं, उन सभी का शारीरिक संस्थान अत्युत्तम था ।८ उनके शरीर की प्रभा निर्मल स्वर्णरेखा के समान होती है ।
श्रीकृष्ण का शरीर मान, उन्मान और प्रमाण में पूरा, सुजात और सर्वांग १- वर्ग १, अध्ययन १ में द्वारिका के वैभव व वासुदेव का वर्णन है । वर्ग ३, अ० ८ वें
में कृष्ण के लघुभ्राता गजसुकुमार का वर्णन है । वर्ग ५ में वें द्वारिका का विनाश और
कृष्ण के देहत्याग का उल्लेख है। २- श्लाघनीय पुरुषों की पंक्ति में श्रीकृष्ण का उल्लेख तथा उनके प्रतिद्वंद्वी जरासंध के
वध का वर्णन है। ३- प्रथम श्रुतस्कंध के अध्ययन ५ वें में थावच्चा पुत्र की दीक्षा और श्रीकृष्ण का
दल-बल सहित रैवतक पर्वत पर अरिष्टनेमि के दर्शनार्थ जाने का वर्णन है। अ० १६
वें में अमरकंका जाने का भी वर्णन है। ४- अ० ८ वें में कृष्ण की आठ अग्र महिषियों तथा उनके नामों का वर्णन है। ५- प्रथम अध्याय में द्वारिका नगरी के राजा कृष्ण वासुदेव का रैवतक पर्वत पर अर्हत्
अरिष्टनेमि की सभा में जाने का वर्णन है। ६- चतुर्थ आश्रव द्वार में, श्रीकृष्ण द्वारा दो अग्रमहिषियों रुक्मिणी और पद्मावती के लिए
किये गए युद्धों का वर्णन है । ७- अध्ययन २२ में नेमिनाथ चरित तथा कृष्ण सम्बन्धी उल्लेख है। ८- प्रज्ञापना सूत्र २३ । ९- हारिभद्रीयावश्यक, प्रथम भाग गा० ३९२-९३ ।
24 • हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वस्प-विकास