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कई विद्वान एक स्वतंत्र उपपुराण के रूप में भी करते हैं।
हरिवंश पुराण में गोपाल कृष्ण सम्बन्धी सबसे अधिक कथाएँ हैं । यह पुराण गाथात्मक है । और लौकिक शैली में निर्मित है । पाश्चात्य विद्वानों ने इसको ईसा की पहली शताब्दी की कृति माना है । इसमें पूतनावध, शकट-भंग, यमलार्जुन-पतन, माखन-चोरी, कालिय-दमन, धैनुक-वध, गोवर्धन-धारण-आदि लीलाओं का विस्तार से वर्णन है । विष्ण पर्व में कृष्ण जीवन की सम्पूर्ण कथा है । कृष्ण के सौन्दर्य का निरूपण है।४
यमालार्जुन-भंग में कृष्ण व बलराम के अंगों का वर्णन है ।' हरिवंश के कृष्ण आबालवृद्ध सभी को प्रिय हैं । जब कभी गोकुल में उपद्रव होता तब गोपिकाएँ श्रीकृष्ण को सुरक्षित देखने के लिए आकुल-व्याकुल हो जाती थीं। उसमें रास-लीला का भी वर्णन है । श्रीकृष्ण को विष्णु के अवतार के रूप में चित्रित किया गया है । जैन तीर्थंकर अरिष्टनेमि यादव कुल के थे
और कृष्ण के अतिबन्धु थे । इसका भी इस पुराण में उल्लेख मिलता है । महाभारत की लक्षाधिक श्लोक संख्या हरिवंश पुराण को इसका अंश मान लेने पर ही पूरी होती है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि भाषा और विषय-वैविध्य की दृष्टि से पुराण एक काल में निर्मित नहीं हुए हैं, अपितु इनकी विभिन्न कालों में रचना हुई है । साम्प्रदायिक आचार्य अपनी-अपनी परम्परा के अनुकूल इन पुराणों में श्रीकृष्ण के चरित्र का निरूपण करते हैं । : २ : बौद्ध साहित्य में कृष्ण :
बौद्ध-कृष्ण कथा घट जातक में मिलती है । जातकों को कछ विद्वान महाभारत तथा रामायण का पूर्ववर्ती मानते हैं । किन्तु घट जातक को जातकों में अर्वाचीन माना गया है । इसका कारण यह है कि यह जातक कृष्णकथा के विकसित रूप की ओर संकेत करता है । डॉकटर भायाणी का मत है कि घट जातक के ब्राह्मण साहित्य की किसी प्रसिद्ध कथा के प्राचीन
१. हिन्दुत्व - रामदास गौड़, पृ. ४९ । २. हिन्दी साहित्य में राधा - पृ. ४१ । ३. विष्णुपर्व अध्याय १२८ । ४. हरिवंश पुराण अ. २०, श्लोक १९-२०-२१ । । ५. अध्याय ७, श्लोक ७ । ६- आर. डेविडस, बुद्धिस्ट इन्डिया, पृ.८० ७- आर.जी. भण्डार, वैष्णविज्म, शैविज्म एण्ड दि माइनर रिलीजस सिस्टम्स, १९१३, पृ. ३८
17 • हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वस्प-विकास