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ब्रह्माण्ड पुराण के बीसवें अध्याय में कृष्ण के जन्म लेने आदि की घटनाएँ हैं। अग्नि पुराण :
अग्नि पुराण के १२ वें अध्याय में कृष्णावतार की कथा वर्णित है । तथा इसी पुराण के अध्याय १३,१४,१५ में महाभारत की कथा का वर्णन किया गया है जिसमें कृष्ण-चरित का उल्लेख है । अग्नि पुराण' विषय की व्याप्ति की दृष्टि से भारतीय संस्कृति का विश्वकोश कहलाता है । कई दृष्टियों से यह अन्य पुराणों की अपेक्षा श्रेष्ठ है । इसमें अलंकारशास्त्र का भी निरूपण हुआ है। लिंग पुराण :
लिंग पुराण' के प्रथम खण्ड के ४९ वें अध्याय में कृष्ण भगवान का आविर्भाव और चरित्र वर्णन है । ब्रह्मवैवर्त पुराण :
ब्रह्मवैवर्त पुराण में श्रीकृष्ण के चरित का पूर्ण विवेचन है । उसके तेरहवें अध्याय में कृष्ण शब्द की अनेक दृष्टियों से व्याख्या की गई है कृष्ण शब्द का का अक्षर ब्रह्मवाचक, 'श्र अनन्तवाचक, ष' शीर्षवाचक, न धर्मवाचक, अ विष्णुवाचक, और विसर्ग नर-नारायण अर्थ का वाचक है । सर्वाधार, सर्वबीज, और सर्वमूर्ति स्वरूप होने के कारण वे कृष्ण कहलाते हैं।
इस पुराण में कष्ण के अर्धनारीश्वर रूप का भी वर्णन किया गया है । इसके अनुसार राधा कृष्ण ही विश्व संचालक सत्ता के दो रूप हैं । राधा कृष्ण के तत्त्व और लीलाओं का इस पुराण में विस्तारपूर्वक वर्णन हुआ है । कृष्ण की भाँति इसमें राधा को भी अवतार माना गया है । इसमें राधा-पूजा पद्धति, राधा-कवच इत्यादि का निर्देश है ।
ब्रह्मवैवर्त पुराण के सृष्टि प्रकरण में भी अन्य पुराणों की अपेक्षा बहुत अन्तर है । अन्य सब पुराणों में अव्यक्त परम् ब्रह्म को ही सृष्टि का निमित्त बताया गया हैं । और उसी से मूल प्रकृति तथा ब्रह्मा, विष्णु आदि देवों की उत्पत्ति बतलाई है, पर ब्रह्मवैवर्त पुराण में सब का स्रोत एक मात्र गोलोक निवासी श्रीकृष्ण को कहा है।
उक्त पुराणों के अध्याय श्रीकृष्णगुणा कीर्तनम् में कृष्ण के गुणों का १. ब्रह्मवैवर्त पुराण : १३/५५-६८ ।
15 • हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वरूप-विकास