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१३. वराह पुराण
ई.स. ८०१ से १००० " १४. ब्रह्मवैवर्त पुराण ई.स. ८०९ से १००० १५. गरुड पुराण
ई.स. ९०० से आसपास १६. भविष्य पुराण
ई.स. ९०१ से १३०० ई. १७. ब्रह्म पुराण
ई.स. १२०१ से १३०० ई. १८. पद्म पुराण
ई.स. १५०१ से १६०० अर्थात् सर्व प्रथम विष्णु पुराण की रचना हुई और अंत में पद्म पुराणकी । अब हम इन पुराणों में आचार्य बलदेव उपाध्याय द्वारा दिए गए कालचक्र के अनुसार कृष्ण के स्वरूप-विकास का शोध-परक अध्ययन प्रस्तुत कर रहे हैं। विष्णु पुराण :
विष्णु पुराण छः अंशों में विभक्त है । इसके चौथे अंश के १५ वें अध्याय में श्रीकृष्ण के जन्म का वर्णन है। और पाचवें अंश में कृष्ण का चरित्र विस्तार से दिया है । इसमें यह वर्णन वासुदेव-देवकी के विवाह से प्रारंभ होता है । इसमें अर्जुन का उल्लेख है, पर महाभारत के युद्ध का कहीं संकेत मात्र भी नहीं मिलता है । इस पुराण में कृष्ण की लीलाओं, उनके रास खेलने तथा उनके देह-त्याग तक का वर्णन है । वायु पुराण : . वायु पुराण के द्वितीय खण्ड के चौंतीसवें अध्याय में स्यमंतक मणि की कथा के वर्णन में कृष्ण का विवरण आया है । वायु पुराण के द्वितीय खण्ड के बयालीस वें अध्याय में श्रीकृष्ण को अक्षर ब्रह्म के परे और राधा के साथ गोलोक-लीला विलासी बताया है । इस पुराण के अनुसार यही उपनिषदों का अरूप, अनिर्देश्य और अनिर्वाच्य ब्रह्म है । यही किसी नाम द्वारा अभिहित न किया जानेवाला परम् तत्त्व है, जिसे सात्वत वैष्णव श्रीकृष्ण कहते हैं । श्रीमद्भागवत :
श्रीमद्भागवत महापुराण १२ स्कन्धों में विभक्त है । दशम् स्कन्ध सबसे बंडा है । इसके ९० अध्यायों में विस्तारपूर्वक वासुदेव देवकी के विवाह से लेकर यादव कल के नष्ट होने तक का वर्णन किया गया है । इस पुराण में कृष्ण की बाल-लीलाओं एवम् रसिक लीलाओं का १- वायु पुराण : द्वितीय खण्ड - अ.४२
13 • हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वरूप-विकास