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________________ श्रीकृष्ण के बालगोपाल स्वरूप का वर्णन किया है । बाद में इस रचना को आधार बनाकर जो हिन्दी जैन हरिवंश पुराण लिखे गए उनमें कृष्ण के बालगोपाल स्वरूप का वर्णन है । हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण के बालगोपाल स्वरूप का ज्यादा रोचक वर्णन नहीं है जबकि वैष्णव साहित्य इससे ओतप्रोत है। ___ आधुनिक हिन्दी जैन साहित्य में नटखट ग्वालबाल के रूप में, कानों में कुण्डल पहनने, पीताम्बर धारण करने, मुकुट लगाने, बाँसुरी बजाने आदि का तथ्यात्मक वर्णन हुआ है । कृष्ण के माखन खाने तथा गोप-गोपियों के साथ घूमने फिरने का भी वर्णन हुआ है । यह वर्णन हिन्दी जैन साहित्य में संक्षिप्त है तथा सामान्य है । कृष्ण का रूप गोकुल की ग्वालनियों के लिए जादुई आकर्षण है । हिन्दी जैन कवि मुनि मिश्रीमलजी ने अपनी कृति “पाण्डव यशोरसायन” में इसका मनोहारी वर्णन किया है । उदाहरण के रूप . में - ‘दहीडो डाले दूध में, मांखण जल माही रे । जल राले कभी छाछ में, मुं राख भराई रे ।। कौतुक दूध का कर रह्या, खेले अपने दावे रे । अधर बजावै बाँसूरी सब ही हँस जावे रे ।। परस्यो रे खावै नहीं, माता नजर चुरावे रे । ___ छाने कोठा में घुसी, माखन गटकावे रे ।। * * * 'मुकुट धर मोरनी, मुझ पर हेर लीनो रे । . कामणारी कान्हड़ौ, मो पै जादु कीनो रे ।। ठुम ठुम चाल सुहावनी, अणियाली आँखड्त्या रे । घुघरवाला केश है, जुल्फा बाकडत्या रे ॥२ उपसंहार जैन परम्परागत कृष्ण कथा, जैन साहित्यकारों, टीकाकारों तथा जैन मुनियों द्वारा प्रणीत कृष्ण विषयक संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश तथा हिन्दी जैन साहित्य तथा उसमें वर्णित कृष्ण के विविध स्वरूपों का हमने पिछले अध्यायों में अध्ययन किया है । उपसंहार" में यह देखना उचित होगा कि १- पाण्डव यशोरसायन : मुनि श्री मिश्रीमल्ल, पृ. १७७/४७ । २- वही, पृ. १७७ । 160 • हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वरूप-विकास
SR No.002435
Book TitleHindi Jain Sahitya Me Krishna Ka Swarup Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshva Prakashan
Publication Year1992
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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