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________________ इंदु चंदु फणु मै खलमलंड, जाणै गिरि पर्वतउ टलमलउ । अन मा कहइ सुरंगिनि नारि, अवयहु इहइ कहसी मारि ॥ २ (६) नेमिनाथ फागु (जयशेखर सूरि ) कृति के रचयिता श्री जयशेखर सूरि का समय पंद्रहवीं शताब्दी विक्रम का पूर्वार्द्ध है । वे श्वेताम्बर जैन सम्प्रदाय के सन्त थे । 1 कृति में श्रीकृष्ण का शौर्य वर्णन निम्न प्रकार हुआ है और “दीपइ जिणि जिणमंदिर मंदर शिखर समान, दीसह दिसाका कहुँ क विमान ।। धन दिहि सहं हथि धापिण वाणी अवर आरांमि, माण कण धण संपूरिय पूरिय द्वारका नामि ॥ २ ॥ आकुलि कुलवट लोपिय गोपिय रमइ रंगि, कांस केसि जाणूर ए चूरए जे बहु भंगि । वसुधा वीर वदीतउ जीतउ जिणि जारासिंधु, तहि हरि अरिबल टालए राज सुबंधु ।। ३ ।। उक्त दो छन्दो में द्वारका तथा कृष्ण का वर्णन करने के पश्चात् कविने नेमि - राजुल के परंपरागत कथानक का वर्णन किया है । (७) रंग सागर नेमि फागुः - ३ इसके रचयिता श्री सोमसुन्दरसूरि हैं । कृति में कृष्ण के शौर्य - वर्णन में उनके प्रारंभिक जीवन की साहस व वीरतापूर्ण घटनाओं का वर्णन निम्न पंक्तियों में द्रष्टव्य है ४ - “अवतरीआ इणि अवसररि मथुरा पुरिस रयण नव नेहरे सुख लालित लीला प्रीति अति बलदेव वासुदेव वे हुरे । वसुदेव रोहिणि देवकी नंदन चंदन अंजन वानरे, वृन्दावनि यमुना जलि निरमलि रमति सांई गाई गान रे । १- प्रधुम्न चरित : छन्द सं० ५३९, ५४०, ५४१ । २- हिन्दी की आदि और मध्यकालीन फागु कृतियाँ संपादक- डॉक्टर गोविन्द रजनीश प्रका० मंगल प्रकाशन, जयपुर, पृ० ११०-११७ ३-- हिन्दी की आदि और मध्यकालीन फागु कृतियाँ० १३६ - १४८ संपा० डॉ गोविन्द रजनीश, प्रका० मगंल प्रकाशन, जयपुर । ४- रंग सागर नेमिफाग : खण्ड प्रथम ३२-३६ / : हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वरूप-विकास 97
SR No.002435
Book TitleHindi Jain Sahitya Me Krishna Ka Swarup Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshva Prakashan
Publication Year1992
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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