SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 105
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नेमिसुर वंदौ चिन लाय, तिहुं जग करि पद अघाय । पापविनाशन है जिननाम, सब जिन माम वंदौ गुणधाम IN अंतिम पाठ"नेमनाथ जिनके वचन, सब जीवन सुखदाय । तहाँ ब्रह्म जिनदास जू, करि लीन्हीं अधिकार ॥१॥ ताही श्री जिनदासजी, ग्रन्थ रच्यो इह सार । सो अनुसार खुस्याल ले, कहो भविक सुखकार ।।२।।" प्रशस्ति - ॥दोहा।। "मेरी बात सुनी अबै, भव्य जीव मम लाय । कालौ जाति खुस्याल जू, सुन्दर सुत जिन पाय IRII ॥चौपाई॥ "देश हुँढाहर जाणौ सार, तामैं धरम तणुं अधिकार । _ विसन सिंघ सुत्त जैसिंहराय, राजकरै सबकू सुखदाय ॥२॥ देशतनी महिमा अति घनी, जिन गेंहा करि अति ही बनी । जिन मंदिर भवि पूजा करै, केइक व्रत ले केइक धरें ॥३॥ - जिन मंदिर करवायै न, सुरम विमल तनीवर छवा । . रथ जात्रादि होत बहु जहाँ, पुन्य उपावन भवियत तहाँ ॥४॥ इत्यादिक महिमा जुत देश, कहि न सकौं मैं और असेस । ... जा मैं पुर सांगावति जानि, धरम उपावन कौ कर धान ॥५॥ जाकी सोंभा है अधिकार, कबलों भाखू भवि विस्तार । जा मधि श्री मूलनायक धांनि, सो मैं भवि जीवां सुख दांनि ।।६।। ॥ सवैया ।। “संघ मूलसंघ जानि गछ सारदा बखांनि, गणजु बलातकार जानौ मन लायकै । कुंद कुंद मुनि की सु आमनाय माहि, भये देवइन्द्रकीर्ति पठष्यतर पायकै ॥ जिन सु भये तहाँ नाम लिखमीदास, • चतुर विवेकी श्रुत-ज्ञान • उपाय के। हिन्दी. जैन साहित्य में कृष्ण का स्वरूप-विकास • 91
SR No.002435
Book TitleHindi Jain Sahitya Me Krishna Ka Swarup Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshva Prakashan
Publication Year1992
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy