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सांगानेर में ही व्यतीत हुआ । यहीं पर उन्होंने उक्त दोनों ग्रन्थों की रचना की थी।
कवि के संबंध में यह जानकारी उत्तर पुराण ग्रन्थ में उपलब्ध है। कवि स्वयं हरिवंश पुराण में भी अपना परिचय इस प्रकार देते हैं -
"शहर जहानाबाद नामका एक शहर है, उसमें जयसिंगपुरा एक स्थान है, वहाँ मैं रहता था । वहाँ महमद बादशाह राज्य करता था। उन्हीं के राज्य में मैंने ग्रन्थ आरम्भ किया ।
शहर के मध्य में शाह सुखानन्द नामका एक वणिक रहता था । उसके घर में गौकुलचन्द नामका एक विद्वान पंडित रहता था । उसके पास मैं प्रतिदिन जाता था और शास्त्र और उपदेश सुनता था । मैंने ब्रह्म जिनदास का हरिवंश पुराण जो था उसको गौकुलचन्द से सुना और उसीकी मैंने अपनी भाषा में रचना की । इसकी रचना संवत् १७८० वैशाख सुदी ३, शुक्रवार को मैंने इस ग्रन्थ को पूरा किया । और इस ग्रन्थ का लेखन अमरचन्द सौगानी ने को लिखवाया । मिति २ गुरुवार संवत् १८२८ की है
और इसके पृ. ३१५ हैं । इसकी साईज ११ x ५है । यह प्रति दि. खण्डेलवाल जैन मंदिर से प्राप्त हुई है।
हरिवंश पुराण तथा उत्तर पुराण ग्रन्थों में परंपरागत जैन पौराणिक कथावस्तु का वर्णन हुआ है । इनकी कथावस्तु व वर्ण्य विषयों का आधार संस्कृत पुराण ग्रन्थ हैं । तद्नुसार हरिवंश पुराण में तीर्थंकर अरिष्टनेमि. तथा उनके समकालीन कृष्ण, बलराम, जरासंध आदि शलाका पुरुषों का चरित वर्णित है । उत्तरपुराण में ऋषभदेव के अतिरिक्त सभी अन्य तेईस तीर्थंकरो व उनके समकालीन शलाका पुरुषों का चरित-वर्णन संक्षेप में हुआ है । ____दोनों कृतियों में बोलचाल की सरल हिन्दी भाषा का प्रयोग हुआ है । दोनों ही प्रसाद गुण-सम्पन्न रचनाएँ हैं । चौपाई, दोहा, सोरठा, आदि मात्रिक छन्द कृतियों में प्रमुखता से प्रयुक्त हुए हैं । कहीं-कहीं अडिल छन्द का भी प्रयोग हुआ है । सर्ग के लिए सन्धि" शब्द का प्रयोग हुआ है । उदाहरण के लिए उनकी कृति हिन्दी हरिवंश पुराण के कुछ प्रमुख चौपाई, दोहा, प्रशस्ति, सवैया, छप्पय इत्यादि प्रस्तुत हैं ।।। मंगलाचरण
"महावीर वंदौ जिनदेव, इंद्रादिक करिहै तिनसेव ।
तीन लोक में मंगलरूप, तो वंदौ जिनराज अनुप ।।१।। १- उत्तर पुराण (उक्त हस्तलिखित प्रति) पृ. ३०८, छन्द ९१-१०७ ।
90 • हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वरूप-विकास