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________________ मेरु कमठ तथा शेष कंप्यौ महलौ जाइ पुकारियो । पुहुमि राहु अवधारियो, रुक्मणि हरि लै गयो । इस अवसर पर हुए युद्ध का कवि ने अत्यन्त ओजस्वी वर्णन किया है । ओजस्वी वर्णन की दृष्टि से कवि कि भाषा बहुत ही समर्थ है । इस युद्ध का वर्णन करते हुए कवि शब्दबद्ध करता है - “सेशपाल अरु भीखम राउ, पैदल मिलै ण सूझे ठाउं । छोरण बूंदत उछली खेह, जाणौ गरजे भादों मेह ॥ शारंगपाणि धनक ले हाथ, शसिपालै पठउ जम साथ । हाकि पचारि उठे दोऊ वीर, बरसे बाण शयण धनवीर ॥२ कृष्ण तथा बलराम की यह वीरता तथा पराक्रम कृति में अनेक स्थलों पर वर्णित है। कृष्ण का यह अद्वितीय पराक्रम उनके श्रेष्ठ अर्घ चक्रवर्ती राजा के रूप के अनुकूल है । जरासंध के साथ युद्ध में उनका यह वीर स्वरूप साकार हो उठा है । जिस चक्र को जरासंध ने कृष्ण को मारने के लिए फेंका, वही चक्र कृष्ण की प्रदक्षिणा करके उनके दाहिने हाथ पर स्थिर हो . जाता है । और पुनः कृष्ण द्वारा छोड़े जाने पर वही जरासंध का सिर काट डालता है। कवि के शब्दों में - तब मागध ता सन्मुख गयौ, ___चक्र फिराई हाकि करि लयौ । तापर चक्र छारियो जामा तीनों लोक कंपियो तामा ।। हरि को नमस्कार करि जानि, दाहिने हाथ चढ्यौ सो आनि । तब नारायण छोड्यो सोह, मागध ट्रक रतन-सिर होई ॥३ १- शालिवाहन कृत हरिवंश पुराण (पृ.५२, १९५३) २- हरिवंश पुराण (आगरा प्रति) पृ. ५२ । १९५८ व १९५३ । ३- हरिवंश पुराण (आगरा प्रति) २५०१-२५०४ 88 • हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वरूप-विकास
SR No.002435
Book TitleHindi Jain Sahitya Me Krishna Ka Swarup Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshva Prakashan
Publication Year1992
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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