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________________ इसकी रचना के समय कवि आगरा में निवास करता था और वहीं इसकी रचना पूर्ण हुई । आगरा में उस समय शाहजहाँ राज्य करता था - *नगर आगरा उत्तम थानु, शाहजहाँ साहि दिये मनु भानु (३४८) । प्रस्तुत कृति की हस्तलिखित प्रतियां कई स्थानों पर उपलब्ध हैं। इसी कृति की १२ से २६ तक की संधियों में कृष्णचरित का वर्णन है । प्रथम संधि में कवि ने २४ तीर्थंकर तथा सरस्वती माता की वन्दना की है । दूसरी और तीसरी संधि में तीनों लोकों के वर्णन के पश्चात् चौथी संधि में आदि तीर्थंकर ऋषभदेव तथा भरत चक्रवर्ती का चरित-वर्णन है । __ ४ से ११ तक की संधियों में प्रथम २१ तीर्थंकर, १२ चक्रवर्ती, ८ बलदेव, ८ वासुदेव तथा ८ प्रति वासुदेवों का संक्षिप्त चरित-वर्णन है । इसके बाद संपूर्ण कृति में २२ वें तीर्थंकर अरिष्टनेमि तथा नवम् वासुदेव कृष्ण का चरित-वर्णन विस्तार से हुआ है। ____ वस्तुतः कृति की मुख्य आधिकारिक कथावस्तु इन्हीं दो शलाका पुरुषों का चरित-वर्णन है । कृष्ण के अनुज गजसुकुमाल तथा पुत्र प्रद्युम्न का चरित-वर्णन भी अवान्तर प्रसंगों के रूप में हुआ है । कृति की भाषा राजस्थानी प्रभावित ब्रजभाषा है । यह मुख्यतः दोहा चौपाई छन्दों में रचित है । कृष्ण के वीर श्रेष्ठ पुरुष के व्यक्तित्व का वर्णन ही कृति में मुख्यतः हुआ है। - कंस की मल्ल-शाला में किशोर कृष्ण का पराक्रम देखिए - "चडूर मल्ल उठ्यो काल समान वज्रमुष्टि देयत समान । __जानि कृष्ण दोनों कर गहै, ___ फेर पाई धरती पर वहै ॥२ रुक्मिणी हरण करते समय कृष्ण जब अपना पाँचजन्य शंख फँकते हैं तो सम्पूर्ण धरामण्डल थरथरा उठता है तथा दुश्मन का सैन्यदल काँपने लगता है - “लई रुकमणि रथ चढ़ाई, पंचाइण तब पूरीयो । णि सुनि वयणु सब सैन कंप्यौ महिमण्डल धरहर्यो । १ एक प्रति श्री पल्लीवाल दि. जैन मंदिर धूलियागंज आगरा में उपलब्ध है जिसकी प्रतिलिपि सं. १८०८ की है । दूसरी प्रति आमेर शास्त्र भण्डार, जयपुर में है जिसकी प्रतिलिपि सं. १७५९ की है। २- शालिवाहन कृत हरिवंश पुराण (हस्तलिखितं आगरा प्रति) पृ. ४५, १७८०-८१ हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वरूप-विकास • 87
SR No.002435
Book TitleHindi Jain Sahitya Me Krishna Ka Swarup Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshva Prakashan
Publication Year1992
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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