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________________ दान : अमृतमयी परंपरा प्रतिपालना, उनका भरण-पोषण, मैं अपनी धन-सम्पत्ति देकर करूगा ।" बस, इसी उत्कृष्ट विचार के कारण उन्होंने संसार का सर्वोच्च पद-तीर्थंकर पद प्राप्त करने का पुण्य बन्ध कर लिया। उन्होंने सारी द्वारकानगरी में पूर्वोक्त प्रकार की घोषणा करवा दी और मुक्तहस्त से दान देकर हजारों धर्मात्मा पुरुषों और महिलाओं को धर्म-प्राप्ति करने में सहयोग दिया। यह था दान द्वारा धर्म-प्राप्ति करने में सहयोग देकर किया गया परानुग्रह ! अपने दान द्वारा धर्म में स्थिर करना भी परानुग्रह है। धारानगरी का जिनदास एक दिन बड़ा धनाढ्य, उदार और धर्मात्मा था। परन्तु मनुष्य की परिस्थिति सदा एक-सी नहीं रहती । परिस्थितियों ने पलटा खाया । यहाँ तक कि वह घर का खर्च चलाने में भी मजबूर हो गया । कहीं नौकरी भी नहीं मिली । मन में चिन्ता होने लगी कि अब क्या किया जाये ? आर्तध्यान धर्मध्यान को नष्ट कर डालता है। जिनदास के मन में भी संकल्पविकल्प उठते थे ‘परिस्थिति' ने उसे चोरी करने को मजबूर कर दिया। लेकिन शान्तनु सेठ ने सब कुछ जानते हुए भी उसकी मदद की तथा धर्म से च्युत होते हए जिनदास को बचा लिया और उसे धर्म में स्थिर किया। यह दान (हार दान) के द्वारा धर्म-प्राप्ति रूप परानुग्रह हुआ । इस प्रकार कई आचार्यों की प्रेरणा से कई लोगों ने दान (अर्थ-सहयोग रूप) द्वारा धर्मच्युत एवं हिंसा परायण लोगों को धर्म-प्राप्ति एवं धर्मवृद्धि कराई, वह भी सामूहिक परानुग्रह है। जैसे रत्नप्रभसूरि ने ओसियाँ नगरी में राजा सहित सारी प्रजा को सप्त कुव्यसन छुड़ाकर राजा के योगदान से धर्म-प्राप्ति कराई, इसमें राजा का सहयोग दान भी परानुग्रह हुआ। __ अब परानुग्रह के चौथे अर्थ पर भी विचार कर लें । इस अर्थ के अनुसार दान द्वारा दूसरों पर आई हुई विपत्ति, निर्धनता, अभावग्रस्तता, प्राकृतिक प्रकोप से उत्पन्न संकट आदि का निवारण करना अथवा निवारण में सहयोग देना परानुग्रह होता है । यह परानुग्रह तो समस्त धर्मों की आम जनता में प्रसिद्ध है।
SR No.002432
Book TitleDan Amrutmayi Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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