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________________ दान की परिभाषा और लक्षण कई बार व्यक्ति ऐसे संकट में पड़ जाता है, खासकर निर्धनता के कारण आर्थिक संकटों से घिर जाता है, उस समय उसे किसी न किसी उदार व्यक्ति के द्वारा सहायता की अपेक्षा होती है। यदि उस समय प्रेमभाव और उदारता के साथ सहायता रूप अनुग्रह मिल जाता है तो वह व्यक्ति अपने आपको सँभाल लेता है । अपनी खोई हुई शक्ति को बटोरकर वह पुनः अपने नैतिक कर्त्तव्य में संलग्न हो जाता है। ___ कई व्यक्ति स्वयं को कष्ट में डालकर भी दान द्वारा परानुग्रह करते हैं। उनका ऐसा परानुग्रह उच्च कोटि का होता है। एक बार छत्रपति शिवाजी औरंगजेब के जाल से मुक्त होकर निकल गए। पर रास्ते में बीमार हो गए। उनके साथ में तानाजी व येसाजी थे। स्वस्थ होने में समय लगता देख उन्होंने महाराष्ट्र राज्य की सुरक्षा के लिए दोनों को वापस जाने की आज्ञा दी। येसा जी सावधानीपूर्वक शम्भाजी को लेकर महाराष्ट्र पहुंचे । तानाजी वहीं गुप्त रूप से रहे । मुर्शिदाबाद में बहुत यत्न करने पर शिवाजी को विनायक देव नामक ब्राह्मण ने अपने यहाँ आश्रय देना स्वीकार किया। वह अविवाहित युवक अपनी मा के साथ रहता था। वह स्वभाव से ही विरक्त था, भिक्षा ही उसकी आजीविका का साधन थी । एक दिन भिक्षा कम मिली । अतः अपनी माँ और शिवाजी को उसने जो कुछ भिक्षा में आया, सब खिला दिया, स्वयं भूखा रहा । अकिंचन ब्राह्मण की दरिद्रता शिवाजी के लिए असह्य हो रही थी। सोचा- "महाराष्ट्र जाकर धन भेज दूंगा।" पर दक्षिण जाने से पहले यवन बादशाह के हाथों बच पाऊँगा या नहीं ? यह सन्देह है। अतः शिवाजी ने ब्राह्मण से कलम-दवात लेकर वहाँ के सूबेदार को लिखा – "शिवाजी इस ब्राह्मण के यहाँ टिका है । इसके साथ आकर पकड़ लें; लेकिन इस सूचना के लिए ब्राह्मण को दो हजार अशफिया दे दें। ऐसा नहीं करने पर शिवाजी हाथ नहीं आएगा।" सूबेदार जानता था कि शिवाजी बात के धनी हैं। उनकी इच्छा के विरुद्ध उन्हें पकडना खेल नहीं है। शिवाजी को दिल्ली दरबार में उपस्थित करने पर बादशाह से एक सूबा तक इनाम मिलने की सम्भावना थी। अतः दो हजार मुहरें लेकर वह उस ब्राह्मण के घर पहुंचा । वह थैली उस ब्राह्मण को सौंपकर शिवाजी को अपने साथ ले गया। ब्राह्मण को कुछ भी पता न था, क्योंकि वह तो शिवाजी को
SR No.002432
Book TitleDan Amrutmayi Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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