SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 90
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दान की परिभाषा और लक्षण सूत्रकार आचार्य उमास्वाति ने दान शब्द का लक्षण किया है - “अनुग्रहार्थ स्वस्यातिसर्गो दानम् ।" - अनुग्रह के लिए अपनी वस्तु का त्याग करना दान है। इसी तत्त्वार्थ सूत्र को केन्द्र में रखकर तत्त्वार्थ भाष्य, श्लोकवार्तिक, राजवार्तिक, सर्वार्थसिद्धि, आदि में इसी सूत्र की व्याख्या की है, वह क्रमशः नीचे दी जा रही है - "स्वपरोपकारोऽनुग्रहः, अनुग्रहार्थं स्वस्यातिसर्यो दानं वेदितव्यम् ॥२ - अपने और दूसरे का उपकार करना अनुग्रह है । इस प्रकार का अनुग्रह करने के लिए अपनी वस्तु का त्याग करना दान समझना चाहिए। “परानुग्रहबुद्धया स्वस्यातिसर्जनं दानम् ।"३ . - दूसरे पर अनुग्रह करने की बुद्धि से अपनी वस्तु का अर्पण करना दान है। . “आत्मपरानुग्रहार्थं स्वस्य द्रव्यजातस्यान्नपानादेः पात्रेऽतिसर्गो दानम्।" - - अपने और दूसरे पर अनुग्रह करने के लिए अपने अन्नपानादि द्रव्य-समूह का पात्र में उत्सर्ग करना, देना दान है। - "स्वस्थ परानुग्रहाभिप्रायेणाऽतिसर्गो दानम् ॥" ५ - अपनी वस्तु का दूसरे पर अनुग्रह करने की बुद्धि से अर्पण (त्याग) करना दान है। __ "परात्मनोरनुग्राही धर्मवृद्धिकरत्वतः । . स्वस्योत्सर्जनमिच्छति दानं नामं गृहिव्रतम् ॥"६ । - धर्मबुद्धि करने की दृष्टि से दूसरे और अपने पर अनुग्रह करने वाली अपनी वस्तु का त्याग दान है, जिसे गृहस्थ व्रत रूप में अपनाते हैं। १. तत्त्वार्थसूत्र ६/१२ . ३. सर्वार्थसिद्धि ६/१२ ५. तत्त्वार्थ सिद्धिसेनीयावृत्ति ६/१३ २. तत्त्वार्थ राजवार्तिक श्लोकवार्तिक ४. तत्त्वार्थ भाष्य ६, तत्त्वार्थसार ४/८८
SR No.002432
Book TitleDan Amrutmayi Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy