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दान विचार
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सामन्त ने कहा । इसके बाद सभा में सन्नाटा छा गया। महामंत्री फिर खड़े होकर गम्भीर स्वर में बोले – “लगता है, हमारे वीर सामन्त एक साथ तीन बड़ी शर्तों को देखकर हिचकिचा रहे हैं। अच्छा, तो मैं उनके लिए विशेष रियायत की घोषणा कर देता हूँ - तीनों में से कोई भी एक प्रतिज्ञा करनेवाला भी स्वर्णमुद्राओं का अधिकारी हो सकता है।" फिर भी सभी सभासद अवाक् थे । कोई भी वीर सामन्त इस नरम की गई शर्त को भी स्वीकार करने की हिम्मत नहीं कर
सका ।
तभी एक समवेत ध्वनि गूँज उठी "नहीं, नहीं महामंत्री ! एक ही वस्तु के सम्पूर्ण त्याग का मतलब है - जीवन की समस्त सुख-सुविधाओं का त्याग ! कितना कठोर है यह !" सबके मस्तक इन्कार में हिल रहे थे ।
"तो फिर सामन्तों ! जिस व्यक्ति ने इन तीनों का त्याग किया हो, वह कितना महान् और कितना वीर होगा ?"
"अति महान्, अति वीर ? अवश्य ही वह अति कठिन एवं असाधारण साहस करनेवाला है। उसकां त्याग महान है !" एक साथ कई स्वर गूँज उठे । "वीर सामन्तों ! हमने कल जिस मुनि को नमन किया था, वह तीनों का ही नहीं, बल्कि ऐसे अनेक असाधारण उग्र व्रतों तथा प्रतिज्ञाओं का पालन करने वाला वीर है, त्यागी है। उसके पास भोग के साधन भले ही अल्प रहे हों, पर भोग की अनन्त इच्छाओं को उसने जीत लिया है। त्याग का मानदण्ड राजकुमार या लकड़हारा नहीं हुआ करता, किन्तु व्यक्ति के मन की सच्ची विरक्ति हुआ
करती है ।"