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________________ दान की निष्फलता के कारण व भाव दान का स्वरूप २७९ रहा था कि "मैंने बहुत बड़ा त्याग किया है, इसलिए गुरुजी मुझ पर बहुत प्रसन्न होंगे।'' किन्तु जब उसने गुरुजी का निर्णय सुना तो भौंचक्का सा प्रश्न-सूचक की दृष्टि से गुरु की ओर देखने लगा। परमहंस ने उसे समझाया - "जो काम तुम्हें एक बार में कर लेना चाहिए था, उसे तुमने हजार बार में किया। जितनी देर में तुमने एक रुपया फेंका, उतनी ही देर में तुम शेष ९९९ रुपये फेंक सकते थे। फिर सबके सब रुपये एक साथ क्यों नहीं फेंक दिए ? इससे मालूम होता है कि तुम्हारी ममता मरी नहीं है । तुम ममत्व के विष को जल्दी नहीं छोड़ सकते । अभी जागृति पूरी नहीं आई । इसलिए अभी तुम संन्यास के अयोग्य हो । यहाँ दान और त्याग में विलम्ब करने वालों की गुजर नहीं।'' यह प्रेरणात्मक जीवनगाथा स्वयं बोल रही है कि दान में विलम्ब करना, दान के महत्त्व को घटाना है। इसलिए विलम्ब को दान का दूषण माना गया है। एक भारतीय कहावत प्रसिद्ध है - "तुरन्त दान महापुण्य ।" उसका भी आशय यही है कि शीघ्र दान देना महापुण्य का काम है। दान के दूषणों में एक बहुत ही खटकने वाला दूषण है - अप्रिय वचन । दान के साथ जब कटु वचन और गालियों की बौछार प्रारम्भ होती है, तब तो दान का सारा मजा किरकिरा हो जाता है । दान दिया जाता है - प्रसन्नता से, प्रेम से, आत्मीयता से, मन की उमंग से या श्रद्धा-भक्ति से, उत्साहपूर्वक । किन्तु ये बातें न होकर दान,केवल तीखे वाक्य वाणों के साथ दिया जाता है, तब तो उसमें बिना मजमून के कोरे लिफाफे के समान केवल नाम का ही दान रह जाता है। उसमें से दान की आत्मा निकल जाती है और केवल दान का कलेवर रह जाता है। यह दान नहीं, दान का मजाक है, जिससे दान करके भी व्यक्ति उसका प्रतिफल ठीक रूप में प्राप्त नहीं कर सकता । इसीलिए आचार्य सोमदेवसूरिने नीतिवाक्यामृत में स्पष्ट कह दिया है - "तत्, किं दानं यत्र नास्ति सत्कारः ?" वह कैसा दान है, जिसमें सत्कार नहीं है ? इसलिए भारतीय साहित्य के महान मनीषी गोस्वामी तुलसीदासजी ने जहाँ दान के साथ कटुता हो, वहाँ से दान लेने का ही नहीं, उस घर में जाने का
SR No.002432
Book TitleDan Amrutmayi Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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