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________________ दान की विशेषता २६९ ४. दान में पात्र का महत्त्व : दान में पात्र का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान है । देयद्रव्य भी अच्छा और योग्य हो, दाता भी योग्य हो, विधि भी ठीक हो किन्तु दान लेनेवाला पात्र अच्छा न हो, दुर्गुणी हो तो दिया हुआ सारा दान निष्फल जाता है अथवा साधारण सा फल प्राप्त होता है । किसान खेत में बीज बोते समय बीज की योग्यता देखता है कि यह बोने योग्य है या नहीं । इसी तरह वह यह भी देखता है कि इस बीज को अंकुरित होने के लिए जितनी मात्र में वर्षा या पानी, सूर्य की धूप, हवा आदि की जरूरत है, उतनी मात्रा में है या नहीं। इन सबके साथ ही वह सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण बात यह देखता है कि बीज जहाँ बोया जा रहा है, वह भूमि शुद्ध, सम और उपजाऊ है या नहीं ? कहीं उसका श्रम व्यर्थ न चला जाए। यही बात दान के सम्बन्ध में है - दान देते समय भी विधि, द्रव्य और दाता के समय में विचार करने के साथ-साथ दाता को दान लेने वाले पात्र का विचार करना अत्यन्त आवश्यक है । उत्तराध्ययनसूत्र के हरिकेशीय अध्ययन में ब्राह्मणों को हरिकेशी मुनि की ओर से उनका सेवक यक्ष उत्तर देता है I ― “थलेसु बीयाइं ववंति कासगा, तहेव निन्नेसु या आससाए । एयाए सद्धाए दलाह मज्झं, आराहए पुण्णमिणं तु खित्तं ॥" - किसान लोग अच्छे स्थलों (खेतों) को देखकर बीज बोते हैं और - सुफल पाकर आश्वस्त होते हैं । इसी श्रद्धा (विश्वास) से मुझे (आहार) दान दीजिए और इस पुण्यशाली क्षेत्र की आराधना कीजिए । पात्र को दिया हुआ स्वल्पदान भी विशिष्ट फलदायक होता है । अत्यन्त कीमती और बढ़िया वस्तु भी अच्छे योग्य दाता के द्वारा बहुत मात्रा में अत्यन्त सावधानी के साथ भी कुंपात्र या अपात्र के दी जाने पर भी वह विपरीत फलदायिनी होती है, जबकि तुच्छ वस्तु थोड़ी-सी मात्रा में भी योग्य दाता द्वारा विधिपूर्वक सुपात्र या पात्र को दी जाय तो वह शुभ फलदायिनी बनती है ।
SR No.002432
Book TitleDan Amrutmayi Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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