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________________ २६८ . दान : अमृतमयी परंपरा खुली पोथी पढ़ो और उससे प्रेरणा लो । स्थानांगसूत्र के चतुर्थ स्थान में श्रमणशिरोमणि भगवान महावीर ने चार प्रकार के मेघ बताए हैं, वे इस प्रकार है ? - (१) कई बादल गर्जते हैं, पर बरसते नहीं । (२) कई बादल बरसते हैं, पर गर्जते नहीं । (३) कई बादल गर्जते भी हैं, बरसते भी हैं। .. (४) कई बादल न गर्जते हैं, न बरसते हैं। इसी प्रकार संसार में चार प्रकार के दाता कहलाते हैं। वे इस प्रकार हैं (१) कई दाता गर्जते बहुत हैं, पर बरसते बिल्कुल नहीं। (२) कई दाता चुपचाप बरसते जातें हैं, गर्जते नहीं। (३) कई दाता गर्जते भी हैं, बरसते भी हैं। (४) कई दाता न तो गर्जते हैं, न उदार भाव से बरसते हैं। निष्कर्ष के तौर पर हम कह सकते हैं कि सर्वश्रेष्ठ दाता वही है जो अपने पात्र से दान के बदले में किसी प्रकार की स्पृहा, बदले की आशा, धन, पुत्र, पद आदि की प्राप्ति की आकांक्षा अथवा स्वर्गादि प्राप्त होने की कामना नहीं रखता, वह तो सिर्फ सुपात्र समझकर उसके ज्ञान-दर्शन-चारित्र की उन्नति और तप-संयम की आराधना की दृष्टि से देता है। इस प्रकार का श्रेष्ठ दाता जहाँ भी होगा, अपने जीवन को सफल बनाएगा और अपने दान से पात्र को भी प्राभावित करेगा। १. स्थानांगसूत्र, स्थान ४, उ. ४, सूत्र ५३३
SR No.002432
Book TitleDan Amrutmayi Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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