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दान की विशेषता
लिए उद्यत होता है ।
सागारधर्मामृत में विशुद्ध दाता का स्वरूप इस प्रकार बताया है. " भक्ति - श्रद्धा-सत्त्व- - तुष्टि - ज्ञानालौल्यक्षमागुणः ।
नवकोटि विशुद्धस्य दाता दानस्य यः पतिः ॥ - सा.ध. ५/४७
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भक्ति, श्रद्धा, सत्त्व, तुष्टि, ज्ञान, अलोलुपता और क्षमा इनके साथ असाधारण गुण सहित जो श्रावक मन-वचन-काया तथा कृत-कारित - अनुमोदित इन नौ कोटियों से विशुद्ध दान का अर्थात् देने योग्य द्रव्य का स्वामी होता है, वही सच्चा दाता कहलाता है । दाता की विशेषताएँ बताते हुए राजवार्तिक में इस प्रकार कहा है -
पात्र में ईर्ष्या न होना, त्याग में विषाद न होना, लेने के इच्छुक तथा लेने वालों पर तथा जिसने दान लिया है, उन सब पर प्रीति का होना, कुशल अभिप्राय, प्रत्यक्ष फल की अपेक्षा न करना, निदान न करना, किसी से विसंवाद न करना आदि दाता की विशेषताएँ हैं । ये हीं बातें सर्वार्थसिद्धि में बताई हैं ।
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वास्तव में श्रेष्ठ दाता वही है, जो अपनी थोड़ी-सी कमाई में से श्रद्धाभाव से विधिपूर्वक योग्य पात्र को दे ।
इसीलिए अमितगति श्रावकाचार के परिशिष्ट में कहा गया है -
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"आस्तिको निरहंकारी वैयावृत्यपरायणः । सम्यक्त्वालंकृतो दाता जायते भुवनोत्तमः ॥”
जो आस्तिक, निरहंकारी, वैयावृत्य (सेवा) में तत्पर और सम्यक्त्वी दाता होता है, वही लोक में उत्तम कहा गया है 1
चार प्रकार के बादलों के समान चार प्रकार के दाता
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१. महापुराण, श्लोक ८३, ८४, ८५ २. राजावार्तिकः ७/३९/४/५५९/२९, - सर्वार्थसिद्धिः ८/३९/६७३/६
भगवान महावीर ने प्रकृति की अनुपम वस्तुओं से भी बहुत कुछ प्रेरणा दी है और संसार को बताया है कि दान, पुण्य या परोपकार के लिए प्रकृति की