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दान की विशेषता
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"अतिदानाद् बलिर्बद्धः ।"
शक्ति से अधिक दान से बलि बाँधा गया। क्योंकि बलि के मन में
दान
- वीरता का अभिमान आ गया था । इसलिए विष्णु ने उसका अभिमान उतारने के लिए वामन रूप बनाकर उसे वचनबद्ध कर लिया था और पाताल लोक में भेज दिया था, ऐसा पुराणकार का कहना है ।
सूरिपुंगव श्री हरिभद्र सूरिश्वरजी रचित श्री योगशतक में देशविरति आत्माओं को गुरुजी ने धर्म उपदेश दिया उसमें दान की विशेषता इस प्रकार बताई है.
२. सुविशुद्धदान -
सद्धर्म को अल्प भी बाधा नहीं आए इस तरह आजिविका के लिए व्यवसाय करते करते प्राप्त किये हुए उस धन द्वारा अपनी आर्थिक शक्ति के अनुसार नीचे बताई हुई विशेषतापूर्वक नित्य सुविशुद्ध ऐसा कुछ भी दान अवश्य देवे । दान देने में इतनी विशेषताओं का ध्यान रखना ।
( १ ) शक्तित: - अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार दान देना । यदि शक्ति का उल्लंघन करके दान का अतिरेक किया जाए तो देनदार बन जाए, (हो सकते है) परिवार को धर्म के प्रति अरुचि हो जाय, कुटुंब आर्थिक विपत्ति में फस जाए, पूँजी कम होते अथवा नाश होते व्यापार समाप्त हो जाए, सामाजिक संबंधों समाप्त हो जाए, परिवार में तथा सम्बधियों में आर्त्त रौद्रध्यान फैल जाए, जिसके कारण अमूल्य मानवभव हार जाएँ । इसलिए शक्ति का उल्लंघन करके दान नहीं देना देना । अब यदि शक्ति छुपाने में आए तो दानधर्म पर प्रीति कम हो जाए, वीर्यान्तराय और मोहनीय कर्म का बंधन हो जाए, समाज में अवसरोचित लाभ न लेने से अपकीर्ति हो जाए, अनेक मनुष्यों की अप्रीति बढती है जिसके परिणाम स्वरूप करुणादि भावों के विपरीत कठोरता आती है, मूर्च्छा-ममता परिग्रह की वृद्धि होती है । इसलिए शक्ति को छिपाना नहीं ।
(२) श्रद्धातः दान देने से नि:स्पृहता, पूर्वबद्ध कर्मों का क्षय, उदारतादि गुणवृद्धि, परमकल्याण, इत्यादि अंतरंग आत्मगुणों की प्राप्ति होती है । ऐसी परम श्रद्धापूर्वक दान देना तथा पर का उपकार, लोक में प्रतिष्ठा, मान,