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________________ २४५ दान की विशेषता "विधि-द्रव्य-दातृ-पात्र विशेषात् तद्विशेषः ।" - विधि, देयवस्तु, दाता और पात्र (दान लेने वाले) की विशेषता से दान से होने वाले लाभ में विशेषता आ जाती है। दान एक प्रकार का सोना है, अपने आप में वह मलिन नहीं होता, किन्तु अनादर से, अविधि से या अनवसर से, दान देने से उक्त दान पर दोष की कालिमा चढ़ जाती है और निपुणता से, सत्कारपूर्वक, अवसर पर, विधिपूर्वक दान देने पर दान में विशेष चमक आ जाती है। दानदाता के जीवन में आया हुआ समस्त कालुष्य भी उसके सहारे से धुल जाता है। . इसीलिए कुरल (९/७) में इसका स्पष्टीकरण करते हुए कहा है - हम आए हुए अतिथि को दान देने या अतिथि-सेवा के माहात्म्य का पूर्णतया वर्णन करने में समर्थ नहीं है। उसमें कितना पुण्य है ? किन्तु यह बात अवश्य कहेंगे कि उस अतिथि यज्ञ (दान)में विशेषता दाता, पात्र, विधि और द्रव्य को लेकर न्यूनाधिक होती है।' · दान में निपुणता को अभिव्यक्त करने के लिए एक ही उदाहरण पर्याप्त होगा। सुखविपाकसूत्र में इसी बात को स्पष्टतया प्रतिपादित करते हुए कहा है कि आदर्श श्रमणोपासक सुबाहुकुमार ने हस्तिनापुर नगर निवासी सुमुख गृहपति के भव (पूर्व-जन्म) में एक दिन धर्मघोष स्थविर के सुशिष्य सुदत्त नामक अनगार को, जो कि एकमासिक उपवास करते थे,जब मासक्षपण तप के पारणे के लिए अपने (सुमुख के) घर की ओर पधारते देखा, देखते ही वह मन ही मन अत्यन्त हर्षित और तुष्ट हुआ । अपने आसन से उठा, चौकी पर पैर रखा एवं वहाँ से उतरकर एकसाटिक उत्तरासंग किया और सुमुख अनगार की ओर सात-आठ कदम सामने गया, उन्हें तीन बार प्रदक्षिणा करके विधिपूर्वक वन्दननमस्कार किया और जहाँ अपना भोजनगृह था, वहाँ उन्हें सम्मानपूर्वक लेकर आया । फिर अपने हाथों से विपुल अशन, पान, खादिम, एवं स्वादिम चारों प्रकार के आहार देने की उत्कट भावना से उन्हें आहार दिया । आहार देने से १. आतिथ्य-पूर्ण माहात्म्य-वर्णने न क्षमा वयम् । दातृपात्रविधिद्रव्यैस्तस्मिन्नस्ति विशेषता ॥ - कुरल (९/७)
SR No.002432
Book TitleDan Amrutmayi Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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