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________________ २३० दान : अमृतमयी परंपरा प्राणियों को अभयदान देने वाले। अभयदाता में जो निर्भयता कूट कूटकर भरी होती है, उसमें से वह भयभीत प्राणियों को निर्भयता प्रदान कर देता है, जिससे वे भी अभय हो जाते हैं। अमितगति श्रावकाचार में आचार्य अमितगति ने पूर्ण अभयदान का माहात्म्य बताते हुए उसे उत्तम फल से युक्त बताया है - "शरीरं ध्रियते येन, समतेव महाव्रतम् । कस्तस्याऽभयदानस्यं फलं शक्नोति भाषितुम् ॥" - जैसे समभाव महाव्रत का धारण-पोषण करता है, वैसे ही अभयदान से जीवों के शरीर का पोषण होता है, उस अभयदान के फल को कौन कह सकता है । अर्थात् उस (पूर्ण) अभयदान का फल अनिर्वचनीय है। पूर्ण रूप से अभयदान में निश्चयनय और व्यवहारनय दोनों से अभयदान होता है। परमात्म प्रकाश में इस विषय को अधिक स्पष्ट कर दिया है - "निश्चयेन वीतरागनिर्विकल्प-स्वसंवेदनपरिणामरूपमभयप्रदानम् स्वकीय जीवस्य, व्यवहारेण प्राणरक्षारूपमभयप्रदानं परजीवानाम् ।" - निश्चयनय से वीतराग, निर्विकल्प स्वसंवेदन-परिणामरूप जो निज आत्म-भावों का अभयदान है, वह अपनी आत्मा की रक्षारूप है, जबकि व्यवहारनय से पर-प्राणियों के प्राणों की रक्षारूप अभयदान है, इस प्रकार अभयदान स्वदया परदया स्वरूप होता है। अभयदान में मन, वचन, काया तीनों की संशुद्धि आवश्यक है । चारित्रसार में स्पष्ट कहा है - "दयादत्तिरनुकम्पयाऽनुग्राह्येभ्यः प्राणिभ्यस्त्रिशुद्धिभिरभयदानम् ।" - जिन पर अनुकम्पापूर्वक अनुग्रह करना है, उन प्राणियों को मन, वचन, काया की शुद्धता से अभयदान देना दयादत्ति है । यही कारण है कि अभयदान में पारंगत पुरुष के पास प्राणी निर्भयतापूर्वक विचरण करता है। उत्तराध्ययनसूत्र में संयतीराजर्षि के जीवन की घटना इस सम्बन्ध में सुन्दर प्रकाश डालती है -
SR No.002432
Book TitleDan Amrutmayi Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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