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________________ दान के भेद-प्रभेद २२९ जो व्यक्ति ऐसे प्रसंगों पर अपने आपको संतुलित रख सकता हो, परिणामों में किसी प्रकार की चंचलता न लाता हो, वही पूर्ण अभयदानी बन सकता है। संत तुकाराम के जीवन का एक प्रसंग है एक बार वे विठोबा की यात्रा को जा रहे थे। रास्ते में एक चौक में कबूतरों का बड़ा दल बिखेरे हुए जुआर के दाने चुग रहा था। ज्यों ही तुकाराम वहाँ से गुजरे तो सभी कबूतर एक साथ उड़ गए। तुकाराम के मन में विचार हुआ कि मेरे से इन्हें भय लगा इससे ये उड़ गए। मेरे अन्दर भय लगने जैसा कुछ है, इसीलिए ये कबूतर घबराते हैं, डरते हैं । सचमुच मैं अभी पूरा भक्त नहीं। गीता में 'यस्मान्नोद्विजतेलोको .....' कहा है, पर मेरे से भय पाते हैं । यद्यपि दिखने में मैं मनुष्य हूँ । अपने को भक्त मानता हूँ, पर मेरे से भय उत्पन्न करने वाली पाशवी वृत्ति - पापवृत्ति अभी तक भरी हुई है, जिससे इन कबूतरों मुझ पर प्रीति न हुई । ये मुझसे डर गए। मेरे रोम में अभी तक जहर भरा है 1 इस विचार से संत तुकाराम की आत्मा तिलमिलाने लगी । उन्होंने संकल्प किया - "कबूतरों को मुझ पर विश्वास आए और वे नि:शंक होकर मेरे कन्धे पर बैठें, तभी मुझे यहाँ से आगे कदम बढ़ाना है और तब तक खाना भी हराम है।" बस, ऐसा संकल्प करके तुकाराम खड़े हो गए । उन्होंने अन्तर का मैल करने का दूर प्रयास शुरु किया । उनके हृदय से प्रेम और करुणा के झरने बहने लगे । अन्धकार के आवरण दूर होने लगे, प्रकाश चारों ओर फैलने लगा । 'आत्मवत् सर्वभूतेषु' की अखण्ड धुन चलने लगी । एक प्रहर, दो प्रहर, एक रात, दो रात, यों करते-करते तीन रातें बीत गई। तीन दिन तक वे प्रायः खड़े रहे । उनके पैर स्तम्भ की तरह जड़वत् हो गए थे। तीसरे दिन कबूतर आकर तुकाराम के कंधे पर बैठने लगे । यहाँ तक कि तुकाराम उन्हें उड़ाते, पकड़ते, फिर भी कबूतरों को उनसे कोई भय नहीं होता था । संत तुकाराम ने कबूतरों का विश्वास जीत लिया । अहिंसा और अभयदान की शक्ति गजब की होती है । वीतराग प्ररूपित मार्ग पर चलने वाले समस्त साधु-साध्वी निर्भय और निःशस्त्र होकर दूसरों को किसी प्रकार का भय न देते हुए इस भूमण्डल पर विचरण करते हैं । शक्रस्तव 1 1 तीर्थंकर प्रभु की स्तुति करते हुए उन वीतराग महापुरुष के लिए एक विशेषण प्रयुक्त किया गया है - अभयदयाणं उसका अर्थ होताहै - जगत् के समस्त
SR No.002432
Book TitleDan Amrutmayi Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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