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दान के भेद-प्रभेद
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प्रयोगशाला में रात-दिन ज्ञान के उपयोग में रत रहकर आनन्द की मस्ती में झूम जाता है। उसे अपने जीवन में ज्ञानरस की मस्ती में किसी भी सांसारिक इष्ट वस्तु का अभाव या वियोग दुःखित नहीं करता और न ही अनिष्ट वस्तु का संयोग या सद्भाव पीडित करता है। इसीलिए अंधी, गूँगी, और बहरी हेलन केलर ने ज्ञान की व्याख्या की है – “Knowledge is Happiness.” ज्ञान आनन्दमय है | इसीलिए ज्ञान को आत्मा की विशेष शक्ति माना गया है । जिस शक्ति के प्रभाव से सारे अज्ञानजनित कर्म, क्लेश, वासनाएँ, राग-द्वेष, मोह आदि भस्म हो जाते हैं। इसीलिए एक अंग्रेज विद्वान ने कहा – “Knowledge is Power.” एक शक्ति है । आत्मा का महान् बल ज्ञान के द्वारा ही प्रगट होता है । इस ज्ञानबल के द्वारा ही व्यक्ति बड़े से बड़े भय को मिटाकर कर्मों से, दुर्व्यसनों और दुर्गुणों से जूझ पडता है, निर्भय होकर हर खतरे को उठाने के लिए तैयार हो जाता है।
ज्ञान
क्या लौकिक और क्या लोकोत्तर सभी उन्नतियों का मूल ज्ञान है । “सम्यग्ज्ञानपूर्विका सर्वपुरुषार्थ सिद्धिः ।" समस्त पुरुषार्थों में सिद्धि या सफलता पहले सम्यग्ज्ञान होने पर ही मिलती है । सम्यग्ज्ञान होने पर व्यक्ति शरीर पर मोह-ममत्व न करके शरीर और आत्मा का भेदविज्ञान अनायास ही कर लेता है। आत्मा के सम्पूर्णज्ञान द्वारा ब्रह्माण्ड की जर्रे जर्रे की बात आँखों से देखें या कानों से सुने बिना ही एक जगह बैठे-बैठे जान लेना ज्ञान की शक्ति का तो चमत्कार है I
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ज्ञानदान देने वाला व्यक्ति आदाता के कोटि-कोटि जन्मों के पाप-तापों को दूर करने में सहायक बनता है, वह एक जन्म के ही नहीं, अनेकानेक जन्म के दुःखों के निवारण में सहायता करता है । क्योंकि जैनागमों के अनुसार प्राप्त किया हुआ ज्ञान केवल इस जन्म तक ही नहीं, अगले अनेकानेक जन्मों तक साथ रहता है । एक व्यक्ति को दिया गया अन्नदान, औषधदान या अभयदान तो केवल एक जन्म के एक शरीर की ही रक्षा करता है, लेकिन ज्ञानदान तो अनेक जन्मों के शरीर और खासकर आत्मा की रक्षा करता है । इससे अन्दाजा लगाया जा सकता है कि ज्ञानदान प्रत्येक प्राणी के लिए कितना अधिक उपयोगी, अनिवार्य एवं कष्ट निवारक है । अन्नदान, औषधदान आदि तो व्यक्ति को किसी-किसी