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दान के भेद-प्रभेद
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ज्ञानदान का महत्त्व
औषधदान का वर्णन पिछले प्रकरण में किया जा चुका है। मनुष्य के भौतिक शरीर की रक्षा के लिए औषध का जितना महत्त्व है उससे भी अधिक महत्त्व है चेतन शरीर की रक्षा, संपुष्टि और उन्नयन के लिए ज्ञान का । ज्ञान भी एक प्रकार का आध्यात्मिक औषध है, बिना उसके चेतन शरीर की रक्षा सम्भव नहीं है अतः दान के क्रम में औषधदान के बाद अब हम 'ज्ञानदान' पर भी विचार करेंगे।
ज्ञानदान को कई आचार्य शास्त्रदान भी कहते हैं। शास्त्रज्ञान की अपेक्षा 'ज्ञानदान' व्यापक शब्द है। वास्तव में ज्ञानदान अत्यन्त महत्त्वपूर्ण और सर्वश्रेष्ठ वस्तु है । एक व्यक्ति किसी को एक समय के लिए भोजन खिला देता है, कोई किसी व्यक्ति को एकाध कपड़ा दे देता है, इससे थोड़ी देर के लिये उसे राहत मिल जाती है, लेकिन कोई उदारचेता महानुभाव भोजन और कपड़ा प्राप्त करने का ज्ञान दे देता है, वह उसके लिए जिन्दगीभर की राहत है। हालांकि यह ज्ञान लौकिक होता है, परन्तु वह भी सामान्य गृहस्थ के लिये बहुत उपकारक होता है। जैनशास्त्र में यत्र-तत्र ज्ञान का बहुत बड़ा महत्त्व है -
"नाणस्स सव्वस्स पगासणाय, अनाणमोहस्स विवज्जणाय ।" - - ‘समस्त वस्तुओं के यथार्थ प्रकाश' (वस्तु स्वरूप के ज्ञान) के लिये और अज्ञान एवं मोह को मिटाने के लिये ज्ञान से बढ़कर कोई महत्त्वपूर्ण वस्तु संसार में नहीं है।
भगवद्गीता में भी ज्ञान की महिमा बताते हुए कहा है -
'नहि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते । सर्वकर्माऽखिलं पार्थ ! ज्ञाने परिसमाप्यते ।। 'ज्ञानाग्निः सर्वकर्माणि भस्मसात्कुरुतेऽर्जन !' 'ज्ञानवान्मा प्रपद्यते ।"