________________
१८४
दान : अमृतमयी परंपरा
भावनाओं व वस्तुओं की अपेक्षा से दान के भेदों का उल्लेख किया है । आचार्य कार्तिकेय', आचार्य जिनसेन', आचार्य सोमदेव, आचार्य देवसेन, एवं आचार्य गुणभद्र ने दान के निम्नोक्त चार भेद बताए हैं(१) आहारदान, (२) औषधदान, (३) शास्त्र (ज्ञान) दानं, और
-
अभयदान ।
-
आचार्य वसुनन्दी' ने भी निम्न चार भेद बताए हैं.
(१) करुणादान, (२) भैषज्यदान, (३) शास्त्रदान, और (४) अभयदान । रत्नकरण्डक श्रावकाचार में आचार्य समन्तभद्र ने दान के चार भेद
और (४)
आवासदान ।
तत्त्वार्थसूत्र की सर्वार्थसिद्धि टीका में आचार्य पूज्यपाद दान के तीन भेद करते हैं । वह इस प्रकार है -
बताए हैं.
―
(१) आहारदान, (२) औषधदान, (३) उपकरणदान,
"त्यागो दानम् । तत् त्रिविधम् - आहारदानमभयदानं ज्ञानदानं चेति ।" दान त्याग को कहते हैं । वह तीन प्रकार का है
आहारदान,
अभयदान और ज्ञानदान ये ही तीन भेद त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र में एवं धर्मरत्न में बताये गयें हैं । आहार की जगह वहाँ धर्मोपकरण हैं । अब इन सबका क्रमशः विश्लेषण करते हैं -
-
सर्व प्रथम आहारदान को ही लें। आहारदान को प्रायः सभी आचार्यों ने माना है। आचार्य वसुनन्दी ने आहारदान के बदले वहाँ 'करुणादान' शब्द का प्रयोग किया है; किन्तु उनका भाव आहारदान से ही है । आहार जीवन की
१. कार्तिकेयानुप्रेक्षा में २. महापुराण में
३. नीतिवाक्यामृत में
४. वसुनन्दी - श्रावकाचार में
५. आहरौषधयोरप्युकरणावासयोश्चदानेन ।
वैयावृत्यं ब्रुवते चतुरात्मत्वेन चतुरस्राः ॥११७॥
६. गृहस्थानामाहारदानादिकमेव परमो धर्मः ।
-
-
परमात्म प्रकाश टीका