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________________ दान के भेद-प्रभेद १६७ उपकार किया, उसे मैं कभी भूल नहीं सकता । यह लीजिए आपका एक रुपया । " विद्यासागर ने हँसते हुए कहा "भाई ! इसमें आभार मानने की कोई जरूरत नहीं । एक देशवासी के नाते मेरा यह कर्त्तव्य था । मेरा दान सार्थक हुआ, तुम्हें पाकर । अब तुम्हें यह रुपया लौटाने की आवश्यकता नहीं । किसी योग्य, दु:खित और दयनीय पात्र को देकर तुम भी अपने जीवन एवं दान को सार्थक करना ।" कृतज्ञता से उसकी आँखों में हर्षाश्रु उमड पडे । - यह है अनुकम्पा दान की सार्थकता । वास्तव में अनुकम्पादान हर हालत में सार्थक होता है। वह निष्फल तो तब होता है, जब उसमें देश, काल और पात्र का विवेक नहीं होता । जिस दान के पीछे संकीर्ण वृत्ति हो, बदले की भावना हो, फलाकांक्षा या स्वार्थपूर्ति की लालसा हो, दान देकर चित्त में संक्लेश होता हो या अनादर और अवज्ञा के साथ जो दान दिया जाता है, वह सार्थक नहीं होता । यहाँ यह शंका होती है कि अनुकम्पादान अनुकम्पनीय व्यक्तियों के प्रति होता है, किन्तु निःस्पृही, त्यागी संत, मुनिराज जो अनुकम्पनीय नहीं, अपितु श्रद्धेय अथवा आदरणीय, उपास्य, भक्ति के योग्य होते हैं, उनको दान देना योग्य है या नहीं ? उनको अनुकम्पापूर्वक दान देने वाला व्यक्ति अनुकम्पादान का फल भागी हो सकता है ? वास्तव में इस शंका का समाधान सहज ही हो जाता है कि अनुकम्पादान के योग्य पात्रों को अनुकम्पापूर्वक दान देना उचित है; किन्तु जो अनुकम्पनीय नहीं, अपितु श्रद्धेय हैं, सुपात्र हैं, उन्हें उपास्य या श्रद्धेय हों तो गुरुबुद्धि से दान देना उचित है, किन्तु जो अपने उपास्य या श्रद्धेय न हों उनके तप-त्याग, निःस्पृहता या आचारर-विचार का पता न हो अथवा जिनका आचार-विचार दूषित हो, व्यवहार अशुद्ध हो, राजसी ठाटबाट से रहते हों, उनके प्रति घृणा तो नहीं होनी चाहिए, किन्तु गुरुबुद्धि से दान देना लाभदायक नहीं होता । ऐसा दान अनुकम्पादान की कोटि में नहीं आता । इसीलिए अभिधान राजेन्द्रकोष में स्पष्ट बताया है . १. अनुकम्पाऽनुकम्प्ये स्यात् भक्ति: पात्रे तु संगता । अन्यथाधीस्तु दातृणामतिचारप्रसंजिका ॥ • अभिधान राजेन्द्रकोष
SR No.002432
Book TitleDan Amrutmayi Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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