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भारतीय संस्कृति में दान
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प्रसंग है - राजा दशरथ अपनी रानी कैकेयी को राम के व्यक्तित्व के सम्बन्ध में समझा रहे हैं। राम के गुणों का वर्णन करते हुए दशरथ कह रहे हैं - "सत्य, दान, तप, त्याग, मित्रता, पवित्रता, सरलता, नम्रता, विद्या और गुरुजनों की सेवा - ये सब गुण राम में निश्चित रूप से विद्यमान है।" यही राम का व्यक्तित्व है। इन गुणों में दान की भी परिगणना की है। यह कथन 'अयोध्याकाण्ड', में किया गया है। दान में सर्वजनप्रियता उपलब्ध होती है। उदार व्यक्ति में ही दाता होने की क्षमता होती है। एक प्रसंग में राम ने कहा है कि, 'दान देना हो, तो मधुर वचन के साथ दो।' ___ 'महाभारत' में विस्तार के साथ दान का वर्णन अनेक प्रसंगों पर किया गया है । 'महाभारत' में कर्ण 'दानवीर' के रूप में प्रसिद्ध है। अपने द्वार पर आने वाले किसी भी व्यक्ति को वह निराश नहीं लौटने देता । धर्मराज युधिष्ठिर का भी जीवन अत्यन्त उदार वर्णित किया गया है । महाभारत के एक प्रसंग पर कहा गया है - "तप, दान, शम, दम, लज्जा, सरलता, सर्वभूतों पर दया - सन्तों ने स्वर्ग के ये सात द्वार कहे हैं।" इस कथन में भी दान की महिमा गाई गई है। एक अन्य प्रसंग पर कहा गया है कि - "धन का फल दान और भोग है।" धन प्राप्त करके भी जिसने अपने जीवन में न तो दान ही दिया और न उसका उपभोग ही किया है, उसका धन प्राप्त करना ही निष्फल कहा है। महाभारत में युधिष्ठिर और नागराज के संवाद में कहा गया है – “सत्य, दम, तप, दान, अहिंसा, धर्म-परायणता आदि सद्गुणं ही मनुष्य की सिद्धि के हेतु हैं, उसकी जाति और कुल नहीं !" इस कथन से फलित होता है कि दान आदि मनुष्य की महानता के मुख्य कारण रहे हैं। किसी जाति में जन्म लेना और किसी कूल में उत्पन्न होना उसकी महानता के कारण नहीं हैं। इस प्रकार महाभारत में स्थानस्थान पर दान की गरिमा और दान की महिमा का प्रतिपादन किया गया है। दान भव्यता का द्वार है, दान स्वर्ग का द्वार है, दान मोक्ष का द्वार है । दान से महान् अन्य कौन-सा धर्म होगा? इन महाकाव्यों में दान का वर्णन व्याख्या रूप में ही नहीं, आख्यान रूप में भी किया गया है। कथाओं के आधार पर दान का गौरव बताया गया है।
महाभारत में दान के विषय में कहा गया है -