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________________ १४४ दान : अमृतमयी परंपरा पारमिता दान को भी माना गया है। दान की पूर्णता भी बुद्धत्व लाभ का एक मुख्य कारण माना गया है । दान के सम्बन्ध में बुद्ध ने 'दीघनिकाय' में कहा है कि “सत्कारपूर्वक दान दो, अपने हाथ से दान दो, मन से दान दो, दोषरहित पवित्र दान दो।" इस कथन में दान के विषय में चार बातें कही गई है - दान सत्कार पूर्वक हो, अपने हाथ से दिया गया हो, भावनापूर्वक दिया हो और दोषशून्य हो । इस प्रकार के दान को पवित्र दान कहा गया है। 'संयुत्तनिकाय' में भी बुद्ध ने कहा है - "श्रद्धा से दिया गया दान प्रशस्त दान है। दान से भी बढ़कर धर्म के स्वरूप को समझाया है।" इस कथन में स्पष्ट है कि यदि दान में श्रद्धा भाव नहीं है, तो वह दान तुच्छ दान है। जो भी देना हो, जितना भी देना हो, वह श्रद्धा से दिया जाना चाहिए, तभी देने की सार्थकता कही जा सकती है। हीन भाव से तथा अनादर से दिया गया दान प्रशस्त दान नहीं कहा जा सकता । 'धम्मपद' में भी दान के सम्बन्ध में बुद्ध ने बहुत सुन्दर कहा है - "धर्म का दान सब दानों से बढ़कर है। धर्म का रस सब रसों से श्रेष्ठ है।" धर्म-विमुख मनुष्य को धर्मपथ पर लगा देना भी एक दान ही है। बौद्ध परम्परा में अनेक व्यक्तियों ने संघ को दान दिया था। अनाथपिण्ड ने जेतवन का दान बौद्धसंघ को दिया था। राजगृह में वेणुवन भी दान में ही मिला है । वैशाली में आम्रपाली ने अपना उपवन बुद्ध को दान में दिया था । सम्राट अशोक ने भी हजारों विहार बौद्ध भिक्षुओं के आवास के लिए दान में दे दिये थे । बौद्ध परम्परा का इतिहास दान की महिमा से और दान की गरिमा से भरा पड़ा है। बौद्ध धर्म में दान को महान् सत्कर्म माना गया है। यह एक महान धर्म है। यही कारण है कि इस धर्म में दान को बहुत बड़ा महत्त्व मिला है। जैन परम्परा में दान : ___ जैन परम्परा में भी दान को एक सत्कर्म माना गया है । जैन धर्म न एकान्त क्रियावादी है, न एकान्त ज्ञानवादी है और न एकान्त श्रद्धावादी ही है। श्रदान, ज्ञान और आचरण - इन तीनों के समन्वय से ही मोक्ष की संप्राप्ति होती है। फिर भी जैन धर्म को आचार-प्रधान कहा जा सकता है। ज्ञान कितना भी ऊँचा हो, यदि साथ में उसका आचरण नहीं है, तो जीवन का उत्थान नहीं हो सकता। जैन परम्परा में सम्यग्-दर्शन और सम्यग्चारित्र को मोक्ष मार्ग कहा गया
SR No.002432
Book TitleDan Amrutmayi Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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