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दान से लाभ
१४१ करते देखकर एक मिलने आए हुए महानुभाव ने पूछ ही लिया कि आपका स्वास्थ्य इतना अच्छा है उसका रहस्य क्या है ? गार्डीसाहब ने जवाब दिया - "मैं लोगों की सेवा करता हूँ उसका यह परिणाम है।" विशेष में उन्होंने कहा कि "जीव दया का पालन करने से, निःस्वार्थ भाव से तथा किसी भी प्रकार की अपेक्षा या बदले की भावना के बिना सत्कार्य करने वाले को भगवान लम्बी आयु देता है।" ४९ वर्ष की उम्र में उन्होंने वकालत छोड़ दी। तब से आज तक सिर्फ देने का ही कार्य किया है, करते हैं।
जैन सिद्धान्त अनेकान्तवाद को अपनाकर वे दान करने में कभी भी जाति-पाँति, धर्म, प्रदेश की संकुचित दिवारों के आधार पर भेदभाव नहीं करते। उनके यहाँ हिन्दू, मुस्लिम के धर्म गुरु, ईसाई धर्म के अनुयायी आते हैं। . इनके दान का क्षेत्र इतना व्यापक और विस्तृत है कि उनका वर्णन करना कठिन है। शिक्षा के क्षेत्र में, स्वास्थ्य के क्षेत्र में काफी योगदान है। आठ राज्यों में ५०० से भी ज्यादा संस्थाएँ है जिसमें लाखों कर्मचारी कार्य करते हैं। हास्पिटल, अनाथाश्रम, वगैरह संस्थाएँ चल रही हैं।
गार्डीजी ने अपने वील में लिखा है कि मेरी मृत्यु के पश्चात् मेरे पुत्र, पौत्र हर दिन एक करोड़ रुपये का दान करेंगे।
अपनी उपस्थिति में ही जिनका नाम जैन इतिहास का सुनहरा पृष्ठ बन गया है। .