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दान : अमृतमयी परंपरा
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उन्हीं के शब्दों में “Every human life has equal worth."
इसी तरह मदर तेरेसा भी अपनी अभिव्यक्ति निम्न शब्दों में व्यक्त करते हैं – “we can not do great things on this earth, only small
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things with great love."
वास्तव में इस दान में ऋण मुक्ति की भावना प्रदर्शित होती है ।
ऐसे ही एक और दानवीर का नाम याद आता है झेलकाविन्सकी । झेल का एक ही स्वप्न था कि... खूब दौलत कमाकर कुबेरपति बनूँ और फिर सारा खजाना दान में खर्च कर दूँ ।
झेल की फिलोसोफी कुछ इस तरह की है - ईश्वरकृपा से अपने को कोई बाह्य संपति ऐसी मिली हो या आंतरिक संपदा विपुल प्रमाण में मिली हो तो उसमें से हो सके जितनी ज्यादा से ज्यादा सार्वजनिक के लाभ के लिए, बहुजन हितार्थे, बहुजनसुखार्थ, दान करना ही चाहिए । झेल का खुद अपना अनुभव भी यही रहा है कि जैसे-जैसे सत्कार्य करता गया वैसे-वैसे उसको अंदर से एक अद्भुत शान्ति का अनुभव होता रहा । झेल के मन में धन प्राप्ति का कोई महत्त्व नहीं है । उसका मन तो दान देने में ही सच्चे आनंद का अनुभव करता है ।
इतिहास में ऐसे किसी भी धनिकों का उल्लेख नहीं है जैसा कि झेल का, जिसने अपनी आर्थिक संपत्ति तो सार्वजनिक सत्कार्यों के लिए दान कर दी हो, तदुपरान्त अपने शरीर का एक अति आवश्यक अंग (किडनी का) का दान जीवित हालत में (मरणोत्तर नहीं) किसी दुःखी व्यक्ति के (स्वजन वगैरह को नहीं) लिए दान कर दिया ।
सचमुच झेल का सादा जीवन उच्च विचार प्रत्येक के लिए प्रेरणादायी बन सकता है।
जैन समाज में भामाशाह के नाम से पहचाने जाने वाले दानेश्वरी श्री दीपचंदभाई गार्डी का जीवन प्रसंग जब मैंने पहली बार पढ़ा था तो आश्चर्य चकित हो गई कि वर्तमान में भी ऐसे दानवीरों की कमी नहीं है। मेरे लिए उनका जीवन एक प्रेरणा रहा है । ९७ वर्ष की उम्र में भी १७ से १८ घंटे काम