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दान से लाभ
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को वह भाग देकर अपने कर्त्तव्य से बरी होना चाहिए । जो व्यक्ति समाज का हिस्सा नहीं देता, उसे भगवद्गीता की भाषा में चोर कहा गया है -
"तैर्दत्ताऽनप्रद्रायेभ्यो यो भुङ्क्ते स्तेन एव सः ।" - समाज के विभिन्न वर्गों द्वारा दिये हुए साधनों को उनको (समाज के जरूरतमंदों को) न देकर जो स्वयं उपभोग करता है, वह चोर ही है।
. श्री आइजन हॉवर (भूतपूर्व राष्ट्रपति, अमेरिका) ने अपने भाषण के सिलसिले में एक बार बड़ी रोचक कहानी सुनाई थी - "मेरे बचपन के दिनों में मेरे घरवाले एक वृद्ध किसान के यहाँ गाय खरीदने गये । हमने किसान से गाय की नस्ल के बारे में पूछा पर उस भोलेभाले किसान को नस्ल क्या होती है, यह कुछ भी मालूम न था । फिर हमने पूछा कि "इस गाय के दूध से रोज कितना मक्खन निकलता है ?" किसान को इतना भी ज्ञान न था । अन्त में हमने पूछा - "खैर, यही बताओ, तुम्हारी गाय साल में औसतन कितना दूध देती है ?" किसान ने फिर सिर हिलाते हुए जवाब दिया - "मैं यह सब नहीं जानता । बस, इतना जानता हूँ कि यह गाय बड़ी ईमानदार है । इसके पास जितना भी दूध होगा, वह सब आपको दे देगी।" तदुपरान्त आईजन हॉवर ने अपने भाषण का अन्त करते हुए कहा - "सज्जनों ! मैं भी उसी गाय की तरह हूँ। मेरे पास जो कुछ भी है, वह सब मैं आप लोगों (राष्ट्र व समाज) को दे दूंगा।"
इसी तरह वर्तमान में भी माइक्रोसोफ्ट के स्थापक प्रमुख बिल गेट्स ने अपनी ५८ अरब डॉलर की संपत्ति दान में देने का विचार व्यक्त किया है। उन्होंने कहा था कि वे 'विश्व को कुछ विधेयात्मक प्रदान करना चाहते हैं।'
बील गेट्स ने १९७५ में माइक्रोसोफ्ट की स्थापना की थी। अपने ३३ वर्ष के कार्यकाल में १३ वर्ष तक फोर्य्यन की सूचि में विश्व के सबसे धनवान व्यक्ति रहे। कंपनी के चेयरमेन पद से निवृत्त होने के पहले उन्होंने अपनी पत्नी मेलीन्डा के साथ किये गये निर्णय के संदर्भ में बताया कि हमारी संपत्ति हमारे संतान को देने के बजाय हम अपनी तमाम संपत्ति विश्व भर में स्वास्थ्य और शिक्षण के कार्य के लिए काम करती 'बील एण्ड मेलीन्डा गेट्स' फाउन्डेशन को दान में देने का वचन दिया है। उन्होंने कहा कि हम समाज को उसी तरह वापस लौटाने की इच्छा रखते हैं जिससे उसकी सबसे विधेयात्मक असर हो ।