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________________ १२२ दान : अमृतमयी परंपरा लेने वाले के द्वारा भी उसी रकम को किसी जरूरतमन्द को दिलाए । फिर वह जरूरतमंद, जिसे वह रकम दी जाए, अपने पास वाले जरूरतमंद को वह रकम दे । इस प्रकार दान का अखण्ड सिलसिला या प्रवाह जारी रहे। बैंजामिन फ्रैंकलिन अपने प्रारम्भिक दिनों में एक अखबार चलाते थे, आगे चलकर वे उसके सम्पादक और प्रकाशक भी बने । उनके पास गृहस्थी का कोई अधिक सामान नहीं था। एक बार उन्हें कुछ रुपयों की जरूरत पड़ी । उन्होंने एक धनवान से २० डालर मागे । उस परिचित व्यक्ति ने उन्हें तुरन्त २० डालर दे दिये । कुछ ही दिनों में बैंजामिन फ्रैंकलिन ने २० डालर बचाए और उन्हे उस भाई को वापस देने आए । जब उन्होंने २० डालर का एक सिक्का मेज पर रखा तो उनके धनाढ्य मित्रने कहा - "मैंने तुम्हें कभी २० डालर उधार नहीं दिए ।" फ्रैंकलिन ने उन्हें याद दिलाया कि "अमुक समय में अमुक स्थिति में तुमने मुझे यह डालर दिया था।" उसने कहा "हाँ, सचमुच २० डालर दिये तो थे।" फ्रैंकलिन बोला - "इसीलिए तो मैं तुम्हें वापस लौटाने आया हूँ।" वह बोला - "परन्तु वापस देने की बात तो कभी नहीं हुई। वापस लेने की बात तो मैं कभी सोच ही नहीं सकता।" फिर उस मित्र ने कहा - "इस सोने के सिक्के को अब तुम्हारे पास ही रहने दो । किसी दिन तुम्हारे जैसा कोई जरूरतमन्द तुम्हारे पास आ जाय तो उसे यह दे देना । अगर वह मनुष्य इमानदार होगा तो कभी न कभी वह तुम्हें उन डालरों को वापस देने आएगा; तभी तुम उससे कहना - इन्हें तुम अपने पास रखो और जब तुम्हारे सरीखा कोई जरूरतमन्द तुमसे माँगने आए तो उसे दे देना।" कहते हैं कि २० डालर की वह स्वर्ण-मुद्रा आज भी अमेरिका के संयुक्त प्रजातन्त्र में किसी न किसी की जरूरत पूरी करती हुई विविध हाथों में घूम रही है। सचमुच बैंजामिन फ्रैंकलिन का यह अखण्ड प्रवाह सामाजिक जीवन में अभाव की बहुत कुछ पूर्ति करता है। 'देना' एक सीधी-सी क्रिया है, जिसमें मानव की मानवता भरी हुई है। यही मानव देता नहीं है तो सच्चे माने में मानव कहलाने योग्य नहीं है। पशु तो देना जानता ही नहीं, वह दूसरे का लेना चाहता है।
SR No.002432
Book TitleDan Amrutmayi Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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