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देना श्रेष्ठ बतलाया गया है ।
बाइबल में भी इसी बात का समर्थन किया गया है
"तीन सद्गुण हैं- आशा, विश्वास और दान | इन तीनों में दान सबसे बढ़कर है ।"
दान : अमृतमयी परंपरा
दान को इन तीनों में सबसे बढ़कर इसलिए बताया गया है कि यह हाथ से होता है । इस कारण सारे संसार के लोग इसे प्रत्यक्ष जान सकते हैं, दान देने में सक्रिय होना पड़ता है जबकि आशा और विश्वास, ये दोनों बौद्धिक व्यायाम है, हार्दिक उड़ाने हैं, मन की की हुई हवाई कल्पनाएँ हैं, चित्त की वैचारिक भागदौड़
हैं।
एक विचारक ने तो यहाँ तक कह दिया है
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"पानी बाढ़ो नाव में, घर में बाढ़ो दाम, दोनों हाथ उलीचिए, यही सयानो काम । "
अगर नौका में पानी बढ़ जाय और उसे हाथों से उलीचकर बाहर न निकाला जाय तो नौका के डूब जाने का खतरा पैदा हो जाता है, वैसे ही घर में धन बढ़ जाय तो परिवार में विभाग या उपभोग के लिए परस्पर झगड़ा पैदा हो जाता है या संतान द्वारा उसे फिजूल के कामों में उड़ाने की आशंका पैदा हो जाती है अथवा चोरों द्वारा हरण किये जाने या सरकार द्वारा करों के माध्यम से खीचे जाने का खतरा पैदा हो जाता है। इसलिए उस बढ़े हुए धन को भी दोनों हाथों से झटपट दान दे देना ही बुद्धिमानी का काम है 1
युग बीत गये, सदियाँ व्यतीत हो गई, लेकिन जगडूशाह का अपने हाथों से किया दान आज भी अपनी असाधारण विशेषताओं के कारण इतिहास का प्रेरक सत्य बना हुआ है। एक बार ५ वर्ष का भयंकर दुष्काल पड़ा । लाखों पशु भूख से मर गये। हजारों मनुष्य अन्न के दाने-दाने के लिए तरसकर प्राण छोड़ बैठे । मानव-करुणा से प्रेरित होकर जगडूशाह नामक जैन श्रावक ने गाँवगाँव में ११२ दानशालाएँ खोल दीं। बिना किसी भेदभाव के भूखों को अन्न दिया जाने लगा । जगडूशाह स्वयं दानशाला में बैठकर अपने हाथों से दान दिया
र थे । वे धन को अपना नै समझकर समाज की धरोहर समझते थे और उनका यह दृढ़ विश्वास था कि घर में पैसा बढ़ने पर उसे दान के जरिये हाथों से