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________________ १०८ प्रकार की कमी नहीं रहती, दान से सब प्रकार की पूर्ति हो जाती है । ४. दान : धर्म का प्रवेशद्वार : दान : अमृतमयी परंपरा दान धर्म का प्रवेश द्वार है । कोई व्यक्ति किसी भवन में द्वार से ही प्रवेश करता है, इसी प्रकार धर्मरूपी भव्य भवन का प्रवेश द्वार दान है। क्योंकि जब तक हृदय शुद्ध नहीं हो पाता, जब तक उसमें धर्म ठहर नहीं सकता ।' और हृदय शुद्धि उसी की होती है, जिसमें सरलता हो, नम्रता हो, मृदुता हो। ये तीन गुण हृदय शुद्धि के लिए सर्वप्रथम आवश्यक हैं । परन्तु इन तीनों गुणों का उद्गम दान से ही होता है । किसान बीज बोने से पहले खेत को रेशम की तरह मुलायम करता है, उसके पश्चात् उसमें बीज बोता है । हृदयरूपी खेत को भी दान से मुलायम किया जाता है। दान जीवन की एक अद्भुत कला है, जिसे सक्रिय करने से पहले दीन-दु:खियों, गरीबों, अपाहिजों, असहायों या पीड़ितों के प्रति अनुकम्पा दया और करुणा के कारण हृदय नम्र बन जाता है, दानपात्रों के प्रति सहानुभूति और आत्मीयता के कारण हृदय मृदु और सरल बन जाता है। दान देने वाले में जब अहंकार नहीं रहता, एहसान करने की बुद्धि नहीं रहती, तभी दान सच्चा दान होता है । इसलिए दान से हृदयरूपी खेत को मुलायम बनाकर ही व्रत या. धर्मरूपी बीज बोया जा सकता है । इस्लाम धर्म के प्रवर्तक हजरत मुहम्मद साहब ने कहा था - " प्रार्थना साधक को ईश्वर के मार्ग पर आधी दूर तक पहुँचाएगी, उपवास महल के द्वार तक पहुँचाएगा और दान महल में प्रवेश कराएगा ।" इसलिए दान धर्मरूपी भव्य भवन में प्रवेश करने के लिए प्रथम द्वार है क्योंकि दान से हृदय कोमल होकर जीवन शुद्धि होती है और शुद्ध जीवन में ही धर्म टिक सकता है। शुद्ध जीवन का प्रारम्भ दान से ही होता है, इसलिए दान को धर्म का प्रवेशद्वार कहने में कोई अत्युक्ति नहीं । "केकय देश की श्वेताम्बिका नगरी का राजा प्रदेशी अत्यन्त क्रूर और १. सोही उज्जूयभूयस्स धम्मो सुद्धस्स चिट्ठई । - उत्तराध्ययन
SR No.002432
Book TitleDan Amrutmayi Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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