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दान से लाभ
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एक-एक कंबल दे दिया । साधु वे कंबल लेकर चल दिये । लाला ने सोचा"पिताजी आएगे, वे कंबले न देखकर क्या कहेंगे? ज्यादा से ज्यादा वे मुझे पीटेंगे। भले ही पीट लें। मैं मार सहन कर लूँगा।" यो सोचकर लाला भक्त बाहर चला गया। पीछे से पिताजी दुकान पर आए। पड़ौसी दुकानदारों ने लाला के पिताजी से कहा - "आज तो आपके लाला ने खूब व्यापार किया है; जरा कंबल निकाल कर गिनो तो सही ।" यह सुनकर उन्होंने कंबले गिनीं तो पूरी थी, एक भी कम न थी। प्रत्यक्षदर्शी पड़ौसियों को इस पर बड़ा आश्चर्य हुआ। उन्होंने कहा - "हम आपसे झूठी बात नहीं कहते । हमने लाला को १५ कंबलें साधुओं को देते देखा है। हमारे साथ चलो, हम तुम्हें प्रत्यक्ष बता देंगे।" यह कहकर एक पड़ौसी दुकानदार लाला के पिता को उसी मार्ग से ले गया, जिधर वे साधु-सन्यासी गये थे । वहाँ जाकर देखा तो उन साधुओं के पास वे कंबले थी। इससे पिता को लाला की संस्कारिता और प्रभु-भक्ति पर विश्वास हो गया। लाला भक्त अपने पिताजी से कोई बात गुप्त नहीं रखते थे । सत्यवादी और परम भक्त लाला के दान के और भी चमत्कार लोगों ने देखे। .. दान दिया हुआ खाली नहीं जाता और प्रायः दान देने से द्रव्य घटता भी नहीं है।
- एक बार सिंह सेनापति ने तथागत बुद्ध से प्रश्न किया - "भंते ! दान से प्राणी को क्या लाभ होता है ? इस पर तथागत बुद्ध ने कहा – “आयुष्मान् । दान से ४ लौकिक लाभ है ।१ ।।
(१) दाता लोकप्रिय होता है; (२) सत्पुरुषों का संसर्ग प्राप्त होता है; (३) कल्याणकारी कीर्ति प्राप्त होती है; और (४) किसी भी सभा में वह विज्ञ की तरह जा सकता है और पारलौकिक लाभ यह है कि परलोक में वह स्वर्ग में जाता है। वहाँ भी दान के प्रभाव से ऋद्धि और वैभव पाता है । यह अदृष्ट लाभ
संक्षेप में दान कामधेनु है और अमृतफल है, जो भी व्यक्ति दान का सक्रिय आचरण, आसेवन और साक्षात्कार करता है उसे अपने जीवन में किसी
१. अंगुत्तर निकाय ५/३४-३६