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दान से लाभ
जर्मनी में एक अत्यन्त दयालु राजा हो चुका है - सम्राट जोसेफ। वह भी अपनी दानप्रियता के कारण काफी प्रसिद्ध था। बंगला में एक कहावत प्रसिद्ध है -
"अभावे स्वभाव।" - अभाव से आदमी का स्वभाव बदल जाता है।
अभाव के समय अपने स्वभाव में स्थिर रखने वाला दान ही है। कई दफा बाहर से अभाव न होने पर भी मानसिक अभाव मनुष्य के मन में पैदा हो जाता है, वह दूसरों की बढ़ती देखकर मन में अभाव या हीनता को महसूस करता है, अगर उस समय उसकी विकृत वृत्ति को कोई बदल सकता है तो दान ही। ___ संत एकनाथ ने भी अपनी सम्पत्ति को ले जाने देकर चोरों का हृदय बदल दिया। इसी तरह कविवर पं. बनारसीदासजी ने भी घर पर चोरी करने आये हुए चोरों की वृत्ति बदल दी इसी दानवृत्ति के कारण । - इसी प्रकार श्रावक जिनदास के विषय में भी कहानी प्रसिद्ध है कि वह जब रात्रि में सामायिक करने बैठा हुआ था तब कुछ चोरों ने मौका देखकर उसके घर में चोरी की । पर श्रावक अपने आत्म-चिन्तन में लीन रहा और चोरी के कारण - गरीबी, संग्रहखोरी पर ही विचार करता रहा । प्रातः जब उसे मालूम हुआ कि चोर रंगे हाथों पकड़े गये हैं, वे जेल में बंद हैं तो राजा से प्रार्थना कर चोरों को छुड़वाया और चुराया हुआ सब धन उन्हें सौंपकर कहा - "तुम गरीबी के कारण चोर बने हो, इसलिए यह धन लो और आज से चोरी छोड़ दो। चोर की माँ तो गरीबी है, वही मनुष्य को चोर, डाकू के रूप में जन्म देती है। दान की शक्ति उसी चोर की माँ - गरीबी, संग्रहखोरी को समाप्त करती है।"
निःसन्देह, दान हृदयपरिवर्तन में चमत्कारी ढंग से सहयोगी होता है । इसलिए बौद्ध धर्म ग्रन्थ विसुद्धिमग्गो (९/३९) में स्पष्ट कहा है -
"अदन्तदमनं दानं, दानं सव्वत्थसाधकं ।' - दान अदान्त (दमन न किये हुए व्यक्ति) का दमन करने वाला तथा सर्वार्थसाधक है। दान से केवल चोरों का ही नहीं, लुटेरों, बदमाशों, वेश्याओं का