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भी जीवन बदला है ।
यह दान का ही अद्भुत प्रभाव था कि राजसी ठाटबाट से रहने वाले राजा हरिश्चन्द्र को ऋषि विश्वामित्र को राज्य दान देने के बाद अपने जीवन को अत्यन्त श्रमनिष्ठ, सादगी और संयम से ओतप्रोत बनाना पडा ।
दान : अमृतमयी परंपरा
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अमेरीका के धनकुबेर डेल कार्नेगी ने जब दान प्रवृत्ति शुरू की तो स्वयं तमाम मादक द्रव्यों का परित्याग कर दिया । उन्होंने स्वयं एक बार कहा था - "मेरा मादकनिषेध भाषण तब प्रभावशाली एवं सर्वोत्तम हुआ, जबकि मैंने स्वयं मद्यत्याग करके अपनी जागिर की आय में से सभी मादक द्रव्यों का सर्वथा परित्याग करनेवाले सभी श्रमिकों को १० प्रतिशत पुरस्कारवृत्ति देने की घोषणा की थी ।" इसलिए दान जीवन परिवर्तन का अचूक उपाय है
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कहा
दान से जीवन-शुद्धि भी होती है और संतोष भी मिलता है । घटना कुछ इस प्रकार है - एक वेश्या थी । उसके पास सौन्दर्य था । जवानी थी और वैभव का भी कोई पार न था । किन्तु उसके दिल में अशान्ति थी । उसने तथागत बुद्ध के चरणों में पहुँचकर शान्ति और सन्तोष का मार्ग पूछा तो उन्होंने. “शान्ति और सन्तोष का मार्ग तुम्हें तभी प्राप्त हो सकता है, जब तुम अपने तन, मन, धन को इस वेश्यावृत्ति से मुक्त कर दो, जब तक तुम अपने तन, मन और धन को इसी प्रकार के कसब कमाने और अपने शरीर को बेचने में लगाये रखोगी, तब तक तुम्हें शान्ति का वह सात्विक मार्ग प्राप्त नहीं हो सकता।" बुद्ध के उपदेश से उसने अपनी वेश्यावृत्ति छोड़ दी और सादगी से जीवन बिताने लगी । एक दिन वह पुनः तथागत बुद्ध के चरणों में पहुँची और उनसे निवेदन किया – “भगवन् ! अब मैं अपना शरीर बेचने का धंधा छोड़ चुकी हूँ। सात्त्विक जीवन बिताती हूँ। मुझे ऐसा मार्ग बताइए, जिससे शान्ति मिले।" बुद्ध ने उसे बताया कि निःस्वार्थभाव से दान का मार्ग ही ऐसा उत्तम है, जिसे अपनाने पर तुम्हारे तन-मन को शान्ति मिलेगी, तुम्हारा धन शुभ कार्यों में लगेगा। जिससे तुम्हें सन्तोष प्राप्त होगा ।"
बस, उसी दिन से उस भूतपूर्व वेश्या ने दानशालाएँ खुलवा दीं, रास्ते पर कई जगह यात्रियों के ठहरने के लिए धर्मशालाएँ आदि बनवा दीं, गरीब, विधवा एवं अनाथ स्त्रियों के खानपान का प्रबन्ध कर दिया । गरीबों को वस्त्र,