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दान से लाभ
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चारों ओर बात फैल गई कि सेठ ने अपना सर्वस्व धन देकर शहर को बचा लिया। शहर के प्रमुख व्यापारी इकट्ठे हुए, उन्होंने सर्वानुमति से यह निर्णय किया कि नगरसेठ के समक्ष हम सब बड़े व्यापारी यह प्रतिज्ञा-पत्र लिखकर दें कि अहमदाबाद के बाजार में जितना माल काटे पर तुलेगा, उस पर चार आने प्रतिशत नगरसेठ को दिया जायेगा ।" तुरन्त प्रतिज्ञापत्र लिखा गया । उस पर हिजरी संवत् ११३७, १० माह शाबान तारीख डाली गई। उस पर राजमुद्रा भी लगाई गई। किशोरदास, रणछोड़दास आदि प्रसिद्ध व्यापारियों के हस्ताक्षर थे। तब से नगरसेठ को यह रकम बराबर मिलती गई। .
यह है दान के द्वारा नगर की सुरक्षा और विरोधी को अपना बनाने की कला । जब मेवाड़भूमि यवनों द्वारा पददलित होने से बचाई न जा सकी । हल्दी घाटी के युद्ध-त्याग के बाद महाराणा प्रताप मेवाड़ के पुनरुद्धार की इच्छा से
वीरान जंगलों में भटक रहे थे। वे पेचीदा उलझन में थे। महाराणा प्रताप निराश • और असहाय होकर मेवाड़-भूमि को अन्तिम नमस्कार करके जाने वाले थे, उनके मंत्री भामाशाह को यह पता लगा। उनकी आँखों में आंसू छलक आये। उन्होंने सोचा - "धन तो मुझे फिर मिल सकता है, लेकिन खोई हुई मेवाड़भूमि की स्वतन्त्रता फिर मिलनी कठिन है।" अतः भामाशाह २५ लाख रुपये तथा २० हजार अशर्फियाँ लेकर राणा प्रताप के पास पहुंचे । उनसे भामाशाह ने कहा – “ओ अन्नदाता ! आप ही मेवाड़-भूमि को अनाथ छोड़कर चले जायेंगे तो उसका क्या हाल होगा?"
"भामा ! क्या करूँ ! लडाई लडने के लिए मेरे पास सेना नहीं है, न सेना के लिए रसद है और न ही उन्हें वेतन देने के लिए रुपये हैं। मैं स्वयं थककर निराश हो गया।" राणा ने कहा ।
· भामाशाह - "अन्नदाता ! इसकी चिन्ता न करें। ये लीजिए २५ लाख रुपये की थैलियाँ और २० हजार सोने की मुहरें । इनसे २५ हजार सैनिकों का १२ वर्ष तक निर्वाह हो सकेगा। आप मेवाड़-भूमि की स्वतन्त्रता की रक्षा के लिए मेरी यह तुच्छ भेंट (दान) स्वीकार करें।"
महाराणा प्रताप भामाशाह द्वारा दिये गये इस दान स्वरूप धन को देखकर खुश हो गए । उनकी आँखों में चमक आ गई । उन्होंने भामाशाह को