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दान : अमृतमयी परंपरा
प्रदेश की सुख-शान्ति और सुव्यवस्था कायम रखी । जगडूशाह की दानवीरता की प्रशंसा सुनकर अणहिलवाडे के राजा वीसलदेव ने अपने मंत्री को भेजकर जगडूशाह को बुलाया । राजदरबार में जगडूशाह का बहुमान करने के बाद राजा ने उनसे पूछा - " सुना है तुम्हारे पास ७०० गोदाम अन्न के हैं । अतः दुष्काल पीडितों की भूख की पीडा मिटाने के लिए तुमसे अन्न लेने के विचार से मैंने तुम्हें कष्ट दिया है । "
जगडूशाह ने राजा की बात सुनकर अत्यन्त विनयपूर्वक कहा "महाराज ! वह अन्न प्रजा का ही है । यदि मेरे कथन पर विश्वास न हो तो. गोदामों में लगे ताम्रपत्र देख लीजिये ।" फौरन ताम्रपत्र मँगवाया गया। जिस पर लिखा था “जगडूः कल्पयामास रंकार्थ हि कणानमून् ।" और ८ हजार मूड़े यानी ३२ हजार मन अन्न जगडूशाह महाराज वीसलदेव को यह कहकर सौंप दिया "अगर किसी का भी प्राण दुर्भिक्ष से गया तो मुझे भयंकर पाप लगेगा ।" उस समय दुष्काल का प्रभाव लगभग सारे देश में था । इसलिए गडूशाह ने सिन्धु देश के राजा हमीर को १२ हजार मूड़े, मोइज्जुद्दीन को २१ हजार मूड़े, काशी के राजा प्रतापसिंह को ३२ हजार मूड़े और स्कंधित के राजा को १२ हजार मूड़े अन्न दुष्काल निवारण के लिए दिया । ११२ दानशालाएँ खुलवाई तथा कुलीन तथा माँगने में शर्माने वाले व्यक्तियों के लिए करोड़ों सोने की दीनारें मोदक में गुप्त रूप से रखकर भिजवाई |
पंचाशक- विवरण में कहा है -
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"दानात्कीर्तिः सुधा शुभ्रा दानात्सौभाग्यमुत्तमम् । दानात्कामार्थमोक्षाः स्युर्दानधर्मो वरस्ततः ॥"
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• दान से अमृत
समान उज्ज्वल कीर्ति फैलती है, दान से मनुष्य
को उत्तम सद्भाग्य (पुण्य) प्राप्त होता है। दान से काम, अर्थ और मोक्ष का लाभ होता है । इसलिए दान धर्म श्रेष्ठ है ।
इसी प्रकार अहमदाबाद में घोर विपत्ति के समय नगरसेठ खुशालचन्द्र ने पीढ़ियों से उपार्जित और संचित धन को विदेशी के द्वार पर उडेल दिया । उन्होंने ४ बैलों के सुन्दर रथ में रुपयों की थैलिया भरकर हमीद खाँ के सामने ढेर लगा दी । और किसी तरह शहर को विनाश-लीला से बचा लिया । नगर में