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दान की परिभाषा और लक्षण
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जॉन डी राकफेलर ने कहा है - 'देना कर्ज नहीं समझों पर अपना अधिकार समझो।' “Think of giving not as a duty but as a privilege.”
केलविन कोलीज ने भी दान के बारे में अपने उद्गार निम्न शब्दों में प्रकट किया है कि -
किसी भी इंसान को कुछ पाने के लिए सम्मानित नहीं किया गया है। उसे सम्मान का पुरस्कार मिला है जब उसने दूसरों को दिया है -
“No person was ever honoured for what he received. Honour has been the reward for what he gave."
. इसी तरह कुछ हृदयस्पर्शी विचार विन्सटन चर्चील भी प्रस्तुत करते
हम अपना गुजारा उससे करते हैं जो हमें मिलता है, पर हम अपनी 'जिंदगी उससे बनाते हैं जो हम दूसरों को देते हैं' – उन्हीं के शब्दों में – “We make a living by what we get, but we make a life by what we
give.”
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एन. आर. नारायणमूर्ति ने भी कहा है कि - 'पैसे की ताकत उसे देने
“The power of money is to give it away'.
आचार्य हेमचन्द्राचार्यजी के दान के लक्षण के अनुसार जो भी व्यक्ति दान के लिए पात्र है, उसे अपनी वस्तु प्रेमभाव से दे देना दान हैं। फिर यह नहीं देखना पड़ता कि वह पात्र विद्वान है या अनपढ़, वह साधु है या गृहस्थ, वह कोई भी हो, अगर संकटकाल है, अभाव से पीड़ित है या किसी रोग का शिकार है तो यह दान का पात्र है, बल्कि अनुकंपापूर्वक उसे देना चाहिए।
एक बार निरालाजी के नाम से १,२०० रुपये पारितोषिक के रूप में रजिस्ट्री से आए। वह पारितोषिक निराला जी की भव्य भावपूर्ण कविताओं का था। महादेवी वर्मा ने वह रजिस्ट्री लेकर अपने पास उनके नाम से वह पैसा जमा करके रखा । कुछ ही दिनों बाद निराला जी को इस बात का पता लगा तो वे महादेवी जी के पास वे रुपये लेने आए। महादेवी जी जानती थी कि उनके हाथ