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________________ उत्तर प्रदेश - - - - - - - - - - मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी यह तीर्थ मथुरा से ४ कि.मी. दूर चोरासी में है सुपार्श्वनाथ प्रभुजी का यह तीर्थ माना जाता है। उनका रत्नजडित सुवर्णमय स्तूप था। श्री पार्श्व प्रभु के समय में उनको ईंटों से ढंकने का और एक मंदिर बनाने का है जो वृहतकल्प में है। राजा उग्रसेन की यह राजधानी और राजमतीकी जन्म भूमि है। श्री पार्श्वनाथजी तथा श्री महावीर स्वामी जी यहां पधारे हैं। विक्रम आठवीं सदी में श्री बप्पभट्ट सू. म. के उपदेश से देवनिर्मित स्तूप का जीर्णोद्धार हआ है। विविध तीर्थ कल्प में यह नगरी १२ योजन लंबी नौ योजन गहरी लिखी है । हीर सू. म. संघ के साथ यहां पधारे तब सुपार्श्वनाथजी तथा श्री पार्श्वनाथजी के मंदिर तथा जंबुस्वामी प्रभवस्वामी आदि ५२७ साधु-साध्वी के स्तूप होने का लेख है। जंबूस्वामीजी यहीं जंबूवन में तप करते थे। यहीं मोक्ष गये हैं। उस समय ८४ वन थे यह स्थान ८४ तरीकों से प्रसिद्ध है। यहीं नया मंदिर बना है। भरतपुर के एक श्रावक को स्वप्न से यहां जंबूस्वामी की प्राचीन पादुका मिली थी। सुपार्श्वनाथ प्रभु के समय में धर्मरुचि और धर्मघोष मुनि मथुरा में भूतरमण उद्यान में कठोर तप करते थे। देवी कुबेरा उनके चरण में पडी। वर मांगने को कहा कुछ नहीं मांगने पर रत्न जडित स्तूप बनाकर रत्नों की मूर्ति विराजमान की। उसमें सुपार्श्वनाथजी मूलनायक थे। विषम काल के भय से वह स्तूप पार्श्वनाथ प्रभु के समय में ईंटों से ढंक दिये गए। यहां दूसरे भी सेंकडों स्तूप थे ऐसा उल्लेख है। श्री कृष्ण का जन्म यहीं कारागृह में हुआ था। श्रीकृष्ण ने कंस को यहीं पछाडा था। यहां कंठाली टीले में जैन प्रतिमा ताम्रपत्र आदि अमूल्य सामग्री मिली है। मथुरा में एक श्वेताम्बर मंदिर है। मथुरा स्टेशन से ४ कि.मी. है। बस, टेक्सी मिलती है। यहां से दिल्ली १४५ कि.मी. आगरा ५४ कि.मी. है। धर्मशाला है। मथुरा (उ.प्र.) फोन : ८६७ १३. श्री शौर्यपुरी तीर्थ श्री शौर्यपुरी जैन मंदिरजी मूलनायक श्री नेमिनाथजी शुभेच्छकः शाह मोहनलालजी दोढीया वसईवाला मलाड - मुंबई
SR No.002431
Book TitleShwetambar Jain Tirth Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year2000
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size75 MB
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