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________________ ५४०) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग - २ मूलनायक श्री नेमिनाथजी यमुना नदी के किनारे बटेश्वर से पहाडी रास्ते पर डेढ़ कि.मी. सौरीपुर गांव में यह तीर्थ है। हरिवंश में यदु राजा था। जिससे यादव वंश चला है। यदु के पौत्र सौरी और वीर थे उन दोनो ने शौरीपुर और सोवीर नगर बसाया सौरी का पुत्र अंधक वृष्णि जिसकी पट्टरानी भद्रा की कोख से समुद्रविजय वसुदेव दस पुत्र कुंती तथा भाद्री दो पुत्रियां हुई। वीर के पुत्र भोजक वृष्णि उनके पुत्र उग्रसेन उनके पुत्र बंधु सुबंधु कंस आदि ६ भाई तथा देवकी तथा राजुलमती दो पुत्रियां हुई समुद्रविजय सौरीपुरमें और उग्रसेन मथुरा में राज्य करते थे। इन समुद्रविजय के भाई वसुदेव ने श्रीकृष्ण और बलराम पुत्र हुए जो बाईसवें तीर्थंकर हुए। उनके गर्भ और जन्म कल्याणक की यह भूमि है। बप्पभट्ट सू. म. के उपदेश से मथुरा की तरह यहां का जीर्णोद्धार हुआ था। विमलचंद्र सू. म. उद्योत सू. म. नेमिचंद्र सू. म. देवेन्द्र सू. म. आदि महान आचार्य यहां पधारे हैं। चौदहवीं सदी में विविध तीर्थकल्प में शंख राजा द्वारा उद्धार कराये जिनालय में श्री नेमिनाथजी की प्रतिमा थी ऐसा उल्लेख है। 'हीर सौभाग्यके' कर्ता सिंहविमलगणि के पिता संघवी सेहिले १७वीं सदी में श्री नेमिनाथजी की प्रतिमा बनवाने का उल्लेख है । प्रतिष्ठा १६४० में आ. श्री हीर सू. म. के शिष्य उ. कल्याणविजयजी उनके शिष्य जयविजयजी यात्रा करने पधारे तब यहां सात मंदिर थे ऐसा उल्लेख है। सौर्यावतंसक उद्यानमें भगवान महावीर एक मच्छीमार को उसका पूर्व जन्म कहकर प्रतिबोधित किया था। यहां के प्राचीन लेख, प्रतिमा, सिक्के वि. सं. १८७० में आगरा ले जाने का उल्लेख है। __बड़ा रेल्वे स्टेशन आगरा फोर्ट ७५ कि.मी. है। पासमें शिकोराबाद २५ कि.मी. है। वटेश्वर से ५ कि.मी. है। वाह से ८ कि.मी. है। सुरक्षा की दृष्टिसे सुबह जाना योग्य है। • ठहरने के लिए धर्मशाला है। सौरीपुर श्वे. तीर्थ पेढ़ी, सौरीपुर (पो. वटेश्वर) जि.आगरा (उ.प्र.) । १४. श्री आग्रा तीर्थ 蜂券券券券经频蜂驗塚塚除驗纷纷搬缘聚缘聚缘聚缘缘端券频探 मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी 警警參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參
SR No.002431
Book TitleShwetambar Jain Tirth Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year2000
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size75 MB
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