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श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-2
चौदहवीं सदी में विविध तीर्थ कल्प में श्री जिनप्रभ सू. जो पुरातत्व विभाग के आधीन है। यह स्थान श्री म. ने श्रावस्ति नगरी का नाम महिड लिखा है वह सहेत संभवनाथ प्रभुजी का जन्म स्थान कहलाता है। यहां मीलों महेत के अपभ्रंश हो सकते हैं उस समय विशाल कोट अनेक तक प्राचीन खंडहर देखने को मिलते हैं। प्रतिमाएं देव कुलिकाएं विभूषित जिन भवन बनाये ऐसा श्री शांतिनाथजी, श्री महावीर स्वामीजी आदि तीर्थंकर कहा जाता है। पहले मंदिर के दरवाजे सूर्यास्त समय आरती यहां पधारे हए हैं। श्री केशीमनि तथा श्री गौतमस्वामी का के बाद मणिभद्रके सानिध्य से (चार वीर में होते हैं) स्वयं ।
यहां प्रथम मिलन हुआ था। प्रभु के जंवाई जमाली यहीं के बंध हो जाते थे वार्षिक मेले में एक बाघ आकर बैठता था
थे। गौशाला ने यहीं प्रभु महावीर के उपर तेजोलेश्या छोड़ी और आरती के बाद चला जाता। अल्लाउद्दीन खिलजी के थी। कपिल केवली यहीं से मोक्ष पधारे हैं। समय में इस मंदिर को क्षति पहुंचाई थी ऐसा १८वीं सदी में
श्वेताम्बर मंदिर का निर्माण कार्य चालू है। प. पू. श्री विनयसागरजी तथा श्री सौभाग्य विजयजी ने
यह तीर्थ बलरामपुर बहराईम रोड़ पर है। अयोध्या से लिखा है।
१०९ कि.मी. है। अयोध्या से गोंडा बलरामपुर होकर जाते सहेत महेत के खोदकार्य में एक प्राचीन प्रतिमा तथा
हैं। बलरामपुर स्टेशन से श्रावस्ति गांव १७ कि.मी. है। शिलालेख मिले हैं। जो मथुरा म्युजियम में हैं। सहेत महेत किले के पास एक मंदिर मिला है
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श्री श्रावस्ति जैन मंदिरजी