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उत्तर प्रदेश
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मूलनायक श्री अजितनाथजी
यह तीर्थ सरयू और घाघरा नदी के किनारे बसे अयोध्या शहर के कटरा मोहल्ले में आया है। यह नगरी श्री ऋषभदेव प्रभु के राज्याभिषेक के समय युगलिया का विनय देखकर इन्द्र महाराज ने बसाई थी। उसका नाम विनीता रखा था इस नगरी के इक्ष्वाकु भूमि कोशल कोशला अयोध्या अवध्या रामपुरी साकेतपुरी अवधपुरी आदि नाम पूर्व में हुए हैं। नाभिराजा के पुत्र ऋषभदेव ने युगलीया धर्म का १८ कोटा कोटी सागरोपम का निवारण करके प्रथम राजा बने प्रथम मुनि और प्रथम तीर्थंकर बने ।
ऋषभदेव प्रभु के गर्भ, जन्म, दीक्षा और केवलज्ञान चारो कल्याणक यहीं हुए हैं । पुरितमाल शकटमुख उद्यान में केवलज्ञान हुआ उनके दर्शन कराने माताजी मरुदेवी को ले 'जाते हर्ष के आंसु से नेत्र पटल भीग गये और समवशरण आदि देखकर माता वैराग्य से एकत्व भावना करते केवलज्ञान पाकर मोक्ष पधारे थे। ऋषभदेव प्रभुजी अयोध्या के इतिहास हैं। उनकी गादी पर आये भरत चक्री आदि असंख्य राजाओं ने दीक्षा लेकर मोक्ष या स्वर्ग गये हैं। कोई राजा गादी पर मृत्यु को प्राप्त नहीं हुए।
उनके वंश में ही श्री अजितनाथ प्रभु हुए थे तथा श्री । अभिनंदन स्वामी तथा श्री सुमतिनाथजी तथा श्री अनंतनाथजी के गर्भ, जन्म, दीक्षा और केवलज्ञान कल्याणक ऐसे चार-चार कल्याणक यहां हुए हैं। कुल पांच जिनेन्द्र के चार-चार कल्याणक अर्थात् २० कल्याणक यहां हुए हैं। २४ जिन के १२० कल्याणकों में से २० कल्याणकों की यह पवित्र भूमि है।
राजा दशरथ रामचंद्रजी, लक्ष्मणजी तथा महावीर प्रभु के नवमें गणधर अचलभ्राता तथा सत्यवादी राजा हरिशचंद्र तथा तेरहवीं सदी में हुए आ. भ. श्री पादलिप्तसू. म. आदि की यह जन्मभूमि है ।
मूलनायक श्री संभवनाथजी
यहां श्री संभवनाथ प्रभुजी के गर्भ, जन्म, दीक्षा और केवलज्ञान चार कल्याणक हुए हैं। यहां सहेत महेत नाम के विख्यात अनेक प्राचीन खंडहर हैं।
कोशल देश की यह राजधानी थी। प्रभु महावीर के समय में प्रसेनजित राजा परम भक्त थे। उन्होंने स्वयं की बहन की श्रेणिकराजा के साथ शादी की थी। यह नगरी कुणाल तथा चंद्रिकापुरी से भी जानी जाती है। यहां अनेको जैन मंदिर थे। सम्राट अशोक तथा उनके पौत्र राजा संप्रति ने यहां मंदिर स्तूप बनवाये थे । बुहत्कल्पसूत्र में इस तीर्थ का वैभव बताया है।
हिंदु स्वयं का तीर्थधाम मानते हैं रामचंद्रजी का जन्म स्थान तथा सीताजी के महल को दर्शनीय मानते हैं।
यहां दो मंदिर है। प्राचीन अवशेष बहुत है कटारा स्कूल में खोदकार्य से खंडित जैन प्रतिमा मिली है जो मौर्यकालीन मथुराकला की गिनी जाती है।
यहीं भगवान आदिनाथ के गर्भ और जन्म कल्याणक हुए हैं। चार तीर्थंकरों श्री अजितनाथ (२), श्री अभिनन्दन स्वामी (४), श्री सुमतिनाथ (५), और श्री अनंतनाथ (१४) भगवंतों के गर्भ, जन्म और दीक्षा और केवलज्ञान कल्याणक यहीं हुए थे। इस प्रकार १८ कल्याणक होने का सौभाग्य इस नगरी को प्राप्त हुआ है। प्रथम भगवान आदिनाथ के बड़े पुत्र भरत ने भी यहीं से संपूर्ण ६ खंडों पर विजय प्राप्त करके प्रथम चक्रवर्ती होने का गौरव प्राप्त किया। मर्यादा पुरुषोत्तम रामचन्द्र के कारण अयोध्या को विशेष गौरव मिला। चैत्र वदी ७ से ९ तक यहाँ मेला भरता है।
अयोध्या रेल्वे स्टेशन से कटरा मोहल्ला २ कि.मी. है। स्टेशन पर रिक्शा मिलते हैं। कार, बस मंदिर तक जा सकते हैं। यहां से फैजाबाद ५ कि.मी. है। मंदिर के चौगान में ही धर्मशाला है। मु. कटरा मोहल्ला, अयोध्या, जि. - फैजाबाद (उ. प्र. )
९. श्री श्रावस्ति (सावस्थि) तीर्थ
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पांचवी सदी में फाहियान तथा सातवीं सदी में हेनसांग नामके चीनी यात्रियों ने भी उल्लेख किया है। ई.स. २०० में राजा मयूरध्वज तथा सं. ९२५ में हंशध्वज, ९५० में मकरध्वज ९७५ में सुघन्वाध्वज सं. १००० में सुहृध्वज हुए यह जैन राजा थे। डॉ. बेनेट तथा डॉ. विन्सन्ट स्मिथ ने जैन राजा गिनाये थे । राजा सुहृद्ध्वज ने आक्रमण हठाकर मुहम्मद गजनवी को पराजित किया था। इस नगरी का नाम सहेत महेत पड़ा उसका उल्लेख नहीं मिलता है।
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