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________________ श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-२ । ३. श्री भेलुपुर तीर्थ वाराणसी । मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी बनारस शहर में बेलुपुर मोहल्ले में यह तीर्थ है। श्री पार्श्वनाथ प्रभुजी के चार कल्याणक गर्भ, जन्म, दीक्षा और केवलज्ञान यहाँ हुए हैं श्री बुद्ध यहां आये तब श्री पार्श्वनाथजी भगवान के अनेक शिष्यों की उनसे मुलाकात हुई थी ऐसा उल्लेख है। प्राचीन मंदिर जीर्ण होने के बाद बहुत अवशेष पुरातत्त्व विभाग में स्थानिक भारतीय कलाभवन में है जो उसकी प्राचीनता बताते हैं। चौदहवीं सदी में श्री जिनप्रभ सू. द्वारा रचित विविध तीर्थकल्प में श्री पार्श्वनाथ मंदिर के पास तालाब का उल्लेख किया है वह इस भेलुपुर मंदिर का है जीर्णोद्धार के समय मूलनायक के रूप में नयी प्रतिमा विराजमान की है प्राचीन प्रतिमा परिक्रमा में विराजमान है। सुंदर है उनको प्राचीन मूलनायक गिना जाता है। इसके 'अलावा श्वेतांबर के १२ मंदिर है। . यह तीर्थ पार्श्वनाथजी भगवान के जीवन के प्रसंगों के साथ बना हुआ है। सर्प को नवकारमंत्र सुनाया वह धरणेन्द्र बना । वाराणसी चार भाग में बसा हुआ है। (१) देव वाराणसी में विश्वनाथ मंदिर है। (२) विजय वाराणसी में भेलूपुर जैन मंदिर है। (३) मदन वाराणसी मदनपुरा के नाम से जाना जाता है। (४) राजधानी वाराणसी जहाँ मुसलमानी बस्ती बहुत है। राजघाट तथा दूसरे स्थानों पर खोदकार्य करते उसमें पाषाण तथा धातु के अनेक कलात्मक प्राचीन जैन प्रतिमाएँ मिली है। जो कलाभवन में है। वाराणसी रेल्वे स्टेशन से ३ कि.मी. है मंदिर तक कार, बस आ सकती है। पास में धर्मशाला है। . काशी बनारस में नौ मंदिर है कठोर बाजार में श्री यशोविजयजी जैन पाठशाला है उसमें पार्श्वनाथ मंदिर है. रामघाट में चिंतामणि पार्श्वनाथ मंदिर है भंडार में परवाला कसोटी की प्रतिमाएं हैं। बी २०/४६, भेलुपुर (वाराणसी) उ.प्र.) ४. श्री भदेनी तीर्थ - "अक्षय तृतीया" मूलनायक श्री सुपार्श्वनाथजी - यह तीर्थ भेलुपुर (वाणारसी) डेढ़ कि.मी. गंगानदी के किनारे पर है जिसको जैनघाट कहा जाता है। वाणारसी का एक अंग है। यहीं सातवें श्री सुपार्श्वनाथ प्रभुजी के गर्भ, जन्म, दीक्षा, केवलज्ञान ये चारों कल्याणक यहां हुए हैं। पूर्वकाल में अनेक मंदिर भी इन कल्याणकों के महत्त्व के कारण है। सुंदर शांत वातावरण है। वाराणसी रेल्वे स्टेशन ४ कि.मी. है। मंदिर से थोडी दुरी पर पार्किंग है। भेलुपुर (वाराणसी) उतर कर यहां आना सुविधाजनक है। मु. जि. बनारस (उ.प्र.)
SR No.002431
Book TitleShwetambar Jain Tirth Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year2000
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size75 MB
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