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________________ उत्तर प्रदेश । ५. श्री कौशाम्बी तीर्थ ) मूलनायक श्री पद्मप्रभस्वामी यह तीर्थ यमुना के किनारे पर बसे हुए गढवा कोशल ईनाम गांव से एक कि.मी. दुर है। ___ यहां पद्मप्रभ स्वामी के गर्भ, जन्म, दीक्षा और केवलज्ञान ऐसे चार कल्याणक हुए हैं। प्रभु महावीर के समय में यहां शतानिक राजा थे उनकी पुत्री चंदनाबाला के रूप में प्रसिद्ध हुई है। प्रभु महावीर अनेक बार यहां पधारे हैं। आर्य महागिरजी म. तथा आर्य सुहस्ति सू. म. यहां पधारे हैं। पांचवीं सदी में चीनी यात्री फाहियान ने स्वयं की टिप्पणी में इस नगरी का वर्णन किया है। त्रिषष्टि तथा विविध तीर्थ कल्प में उल्लेख है। सं. १५५६ में पं. हंससोम यहां पधारे तब ६४ प्रतिमाएं थी। १६६१ विनयसागरजी म. और १६६४ श्री जयविजयजी म. ने दो मंदिर गिनाये हैं। १७४७ में पू. सौभाग्य विजयजी म. ने एक जीर्ण मंदिर गिनाया है। यहां भूगर्भ में से अनेक प्राचीन अवशेष निकले हैं। जो प्रयाग म्यूजियम में है। इस विराट नगरी के ४ मील का किला तथा ३२ दरवाजे थे। ३०-३५ फुट उंची दीवाल आज ध्वस्त हुई दिखती है । भगवान महावीर का अभिग्रह चंदनबाला ने यहीं उडद के बाखले से पारणा कराया था वह प्रभुजी की प्रथम शिष्या बनी थी। ____ कपिल केवली की यह जन्मभूमि है। एक प्राचीन स्तूप है। जो संप्रति राजा द्वारा बनाया कहलाता है। आज इस तीर्थ का उद्धार पू. स्व. आ. भ. श्री विजयभुवन तिलक सूरीश्वरजी म. के शिष्य पू. आ. श्री विजय भद्रंकर सूरीश्वरजी म. के उपदेश से चालु है। धर्मशाला भी बनेगी। पास का रेल्वे स्टेशन अल्हाबाद ६४ कि.मी. है। अल्हाबाद से सरायअकिल ४२ कि.मी. वहां से कौशाम्बी गेस्ट हाउस १८ कि.मी. और वहां से ४ कि.मी. यह स्थान है। धर्मशाला है। विशाल धर्मशाला बन रही है। मु. कौशाम्बी, पो. गढवा, ता. मजनपुर (जि. अल्हाबाद) उ.प्र. ६. श्री पुरिमताल तीर्थ मूलनायक श्री आदीश्वरजी यह तीर्थ अल्हाबाद शहर में है। युगादिदेव श्री आदीश्वर प्रभुजी को यहीं केवलज्ञान हुआ था। अयोध्या (वीनिता) नगरी का यह भाग था। पुरितमाल तथा प्रयाग वीनिता नगरी के भाग थे। अकबर के समय में अल्हाबाद नाम पड़ा है। यहां शकटमुख उद्यान में वट के वृक्ष के नीचे श्री आदिनाथ प्रभुजी को केवलज्ञान हुआ था। और पुत्र दर्शन करते आते हुए माता मरुदेवी यहीं केवलज्ञान प्राप्त कर यहीं से मोक्ष गये। वट के नीचे केवलज्ञान हुआ था वहां प्रभुजी के पादुका की सं. १५५६ में पू. हंशसोम विजयजी म. ने दर्शन करने की जानकारी दी है। यह वटवृक्ष त्रिवेणी संगम के पास किले में है। आ. श्री जिनप्रभ सू. म. ने विविध तीर्थ कल्प में यहां श्री शीतलनाथ प्रभु का मंदिर होने की जानकारी दी है। गंगा यमुना और सरस्वती नदी का यहां संगम होता है। वह त्रिवेणी संगम कहलाता है। हिन्दुओं में प्रयाग तीर्थ कहते हैं। और बारह वर्ष उपरांत यहां मेला भरता है। पुरातत्त्व द्वारा म्यूजियम है। उसमें बहुत संग्रह है। यहां के किले में कीर्ति स्तंभ है। वह संप्रति राजा का है। जिसमें प्रियदर्श संप्रति का उपनाम और रानी का नाम है। सम्राट अशोक ने बनाया ऐसा भी कहा जाता है वह संप्रति के दादा थे। ___ अल्हाबाद रेल्वे स्टेशन से ३.५ कि.मी. दूर है। साधन मिलते हैं। और मंदिर तक जा सकते हैं। मंदिर के पास ही धर्मशाला है। मु. १२० बाई का बाग, ग्वालियर स्टेट मंदिर के सामने, अल्हाबाद (उ.प्र.)
SR No.002431
Book TitleShwetambar Jain Tirth Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year2000
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size75 MB
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