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उत्तर प्रदेश
१. श्री चंद्रपुरी तीर्थ
मूलनायक श्री चंद्रप्रभ स्वामी
यह तीर्थ स्थल चंद्रावती गांव के पास गंगा नदी के किनारे पर है। इसको चंद्रोटी भी कहते हैं।
यह तीर्थ आठवें तीर्थंकर चंद्रप्रभ स्वामी के नाम से प्रसिद्ध है। उनके गर्भ, जन्म दीक्षा और केवलज्ञान ये चार कल्याणक यहां हुए हैं।
श्री जिन प्रभ सू. म. ने चौदहवीं सदी में विविध तीर्थकल्पों की रचना की है उसमें इस तीर्थ का उल्लेख है । पास में
श्री सिंहपुरी जैन मंदिरजी
मूलनायक श्री श्रेयांसनाथजी
हीरावणपुर गांव में यह तीर्थ है। यहां श्री श्रेयांसनाथ प्रभुजी के गर्भ, जन्म, दीक्षा और के वलज्ञान चार कल्याणक हुए हैं । यह स्थान सारथान कहलाता है वह श्री श्रेयांसनाथ का अपभ्रंश हुआ हो ऐसा बनता है। यहां १०३ फुट ऊंचा अष्टकोण स्तूप है जो २२०० वर्ष पुराना माना जाता है। वह सम्राट अशोक के पौत्र श्री संप्रति राजा द्वारा श्री श्रेयांसनाथ प्रभुजी की कल्याणक भूमि को स्मृति रूप बनाता है। यह स्तूप अभी पुरातत्त्व खाते की देखरेख में है। संशोधन से विशेष जानकारी मिल सकती है। यहां भूगर्भ में से प्राप्त होने वाले शिलालेखों से भी इस
बहुतसी टेकरियां हैं शोधकार्य करते बहुत प्राचीन सामग्री प्राप्त हो ऐसा है। यहां प्राचीन टेकरी है उसको खोदने पर यह मंदिर मिला है।
२. श्री सिंहपुरी तीर्थ
रानम
"श्रीमहावीर जैन आराधना गांधीनगर पि ३८२००
पास का रेल्वे स्टेशन बनारस २३ कि.मी. है। बनारस गाजीपुर मुख्य सड़क पर जाते रोड से ९ कि.मी. अंदर है धर्मशाला है। मु. चंद्रावती (जि. वाराणसी) उत्तरप्रदेश |
स्तूप के संबंध में जैन धर्म संबंधी उल्लेख मिलते हैं। यहां मृग उद्यान है उसकी प्राचीनता भी शोधनीय है। चौथी सदी में फाहियान और सातवीं सदी में ह्वेनसांग इन चीनी यात्रियों ने इस स्थान का वर्णन किया है।
ग्यारहवीं सदी में यह स्थान मोहम्मद गजनवी के आधीन था उसके बाद कन्नोज के राजा गोविंदचंद्र की रानी कुमार देवी ने यहां धर्मचक्र जिनविहार बनाया था। सं. १९९४ में शहाबुद्दीन घोरी के सेनापति कुतुबद्दीन ने यहां मंदिरों का नाश किया था। उस समय दो विशाल स्तूप बचे हैं एक-एक श्वेताम्बर, दिगंबर, बौद्ध मंदिर तथा एक स्तूप है ।
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इस स्तूप का भारत सरकार सिंहत्रयी ने राज्य चिह्न के रूप में मान्य करके धर्मचक्र को राष्ट्र ध्वज उपर अंकित किया है और श्रमण संस्कृति को बहुमान दिया है। बनारस छावनी स्टेशन से ८ कि.मी. है साधन उपलब्ध है सारनाथ स्टेशन तथा चौराहे से डेढ़ कि. मी. अंदर हीरावणपुर गांव में है वाहन मंदिर तक जा सकते हैं। रुकने के लिए धर्मशाला है । मु. सिंहपुरीजी, हीरावणपुर (पो. सारनाथजी) जि. वाणारसी (उ. प्र. )