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बिहार विभाग
तिने
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महासुद ५ को तपा. भट्टारक आचार्य श्री धर्म सू. म. के
द्वारा प्रतिष्ठि होने का शिलालेख है। वर्तमान में स्थित पादुका में वि. सं. १८२५ महा सुद तीज का लेख है। और वीराणी गोत्रीय श्री खुशालचंद नाम अंकित है।
पहाड़ पर जलमंदिर, मधुवन में सात मंदिर पहाड के क्षेत्रपाल, भोमीयाजी मंदिर आदि की भी एक साथ प्रतिष्ठा होने का उल्लेख है। मंदिरों का कार्य भार श्री श्वेताम्बर जैन संघ को सौंपने में आया। जगत सेठ द्वारा हुआ महान कार्य अमर रहेगा। तीर्थ का यह इक्कीसवां उद्धार माना जाता है।
अनेक आपत्तियों से निकलकर वि. सं. १९२५ से १९३३ जीर्णोद्धार कराकर विजयगच्छके जिनशांतिसागर सू. म. खतरगच्छ के जिनहंस सू. म. तथा श्री जिनचंद्र सू. म. के द्वारा प्रतिष्ठा हुई। यह बाईसवां उद्धार मानने में आया है । उस समय भ. आदिनाथ श्री वासुपूज्य स्वामी, श्री नेमिनाथ भगवान, श्री महावीर स्वामी तथा शाश्वत जिन ऋषभानन चंद्रानन वारिषेण और वर्धमान यह नई देरियां हुई है। मधुवन में भी कितने ही नए जिनालय हुए।
यह पहाड जगतसेठ को भेंट मिला परन्तु दुर्लभ होने से पालगंज ने राजा ने ई. स. १९०५-१९९० में राजा को धन की जरुरत पड़ी जिससे पहाड़ को बेचने या गिरवी रखने का विचार किया तब रायबहादुर श्री बद्रीदासजी जोहरी मुकाम कलकत्ता तथा मुर्शिदाबाद के महाराज बहादुरसिंहजी दुगडे राजा की यह मनोभावना जानकर अहमदाबाद की सेठ आनंदजी कल्याणजी पेढी को पहाड़ खरीदने की प्रेरणा दी और पेढी ने भी प्राचीन
फरमान आदि देखकर अनुकूल देखा ता. ९-३-१९९८ के दिन दो लाख बयालीस हजार राजा को देकर पारसनाथ
पहाड खरीद लिया। जिससे पहाड फिर से जैन श्वेतांबर संघ के आधीन आया। इन महानुभावों का सहयोग प्रशंसनीय है।
वि. सं. १९८० में आगमोद्धारक पू. आ. श्री सागरानंद सू. म. यहां पधारे और जीर्णोद्धार की प्रेरणा की। उनके समुदाय के पू. सा. श्री रंजन श्रीजी म. के तथा सा. श्री सूरप्रभाश्रीजी म. के प्रयास से सं. २०१२ में जीर्णोद्धार शुरु हुआ और २०१७ में पूर्ण हुआ। यह तेईसवां उद्धार था । अभी सम्मेदशिखरजी की ३१ देरियां, जलमंदिर, गंधर्व नाला की धर्मशाला, मधुवन की जैन कोठी तथा मधुवन के सभी श्वेताम्बर जैन मंदिर, भोमियाजी का मंदिर
और धर्मशालाकी व्यवस्था अजीमगंज निवासी स्व. सेठ
श्री महाराज बहादुरसिंहजी दुगड के सुपुत्रों की देखरेख में
है। पहाड़ का प्रबंध सेठ आनंदजी कल्याणजी पेढी के हाथ में है ।
इस पवित्र और महान तीर्थ की खूब महिमा है। आज भी यह बहुत बड़ी यात्रा गिनी जाती है।
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सुबह साढ़े चार बजे लकड़ी साथ लेकर प्रारंभ करते हैं और फिर उतरते हुए सांय के चार बज जाते हैं। भोमीयाजी के मंदिर से थोड़ी दूर जाते ही पहाड़ की चढाई शुरु हो जाती है। यात्रा प्रवास में ६ मील चढ़ाई, ६ मील परिभ्रमण और ६ मील उतरना कुल १८ मील का रस्ता होता है ।
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श्री अरनाथजी टोंक - पादुका
श्री नेमिनाथ टोंक- पादुका
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